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________________ श‍ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. रु, ते उत्कृष्ट जयने पामे बे ॥ ३ ॥ तेमना जे शिष्यो तेने विषे श्रेष्ठ अने जाग्यनी नूमिरूप, थने व्याख्यान दीपिका वगेरे ग्रंथोना रचवाथकी जे पोताना यशने गुंथता हवा, एवा जुवनसुंदराचार्य वगेरे जे पांच शिष्यो ते जय पामो ॥४॥ तेन॑ना बेल्ला शिष्य प्रानाविक श्रीरत्नशेखर सुशिष्य थया, तेणें सुखें करी बोध थाय, तेवी गृहस्थना प्रतिक्रमणसूत्रनी वृत्ति, पोता ना तथा पारका हितने माटे करी ॥ ५ ॥' हवे पोताना माननो त्याग करतो तो कषि कहे बे. प्रतिक्रमणसूत्र वृत्तिना करनारनी पंक्तिने इच्छतो मंदमति एवो जे हुं बुं,तो पण हुं हसवा लायक न थाउं, एवी इब्बा राखुं ं. कारण के सूर्य किरणनी पंक्तिमा प्रवेश करतो एवो पतंगीयो, चुं श्रा पणे निवारण करवा लायक बे ? ना नथीज ॥ ६ ॥ " " हवे इहां साधु तो सदा सर्वदा सामायिकवंत बेज ने श्रावकें पण सामायिक उच्चरीने पी पडिक्कमणुं करनुं, ए उत्सर्ग मार्ग बे. हवे सामा विकना करनार श्रावके यवश्यपणे साक्षात् गुरुने नावें स्थापनाचार्य नी स्थापना करीने सर्व क्रिया करवी. जेमाटें सिद्धांतमां सकलधर्मनी कि यानुष्ठाननुं जे करवुं, ते स्थापनाचार्यनी साहीयेंज कर. स्थापना चार्य विना जेटलुं क्रियानुष्ठान करीयें तेनुं कां फल न थाय. जेमाटें शून्य कि या फल पण शून्य थाय. श्रीजिनन गणि क्षमाश्रमणजीयें श्रीविशेषाव श्यकमांकयुं जे जे ॥ यतः ॥ गुरुविरहम्मि य ठवणा, गुरुवरसोवदंस एवं च ॥ जिविरहम्मिश्र जिलबिं, व सेवामंतणं सहजं ॥ १ ॥ रन्नो व पुरिसस्स वि, ज़ह सेवामंतदेवयाएव ॥ तह चेव पुरिस्सवि, गुरुणो सेवा विषयक ॥ अर्थः- गुरुने विरहें स्थापनाचार्य स्थापवा. तेने सा दात् गुरुनी परें गुरुनी सरखा गुरु दर्शन, प्रायः जाणवा. जेम जिनेश्वर श्री तीर्थंकर नगवानने खनावें जिनना बिंबनी सेवा थाय बे, नक्ति थाय बे, स्तुति थाय बे, तेम जाणवुं ॥ १ ॥ तथां जेवारें रन्नो एटले राजा वेगलो होय तेवारें सर्व अधिकार मंतदेवया एटले मंत्रीनो होय राजाने तुल्य प्रधान कहेवाय तेन गुरुने खनावें पण स्थापनाचार्यनो विनयादिक सर्व गुरुनी पेठें करवो. गुरुनी सेवा ते विनयनी हेतु बे ॥ २ ॥ हवे साधुने सामायिकना प्रस्तावने विषे नंते एवो जे शब्द तेनी व्या ख्यामां जाष्यकार कहे बे के गुरुने विरहें स्थापनाचार्य स्थापवा. इत्यादिक
SR No.010249
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages477
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size63 MB
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