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जैनकथा रत्नकोप नाग त्रीजो. चार कहात ॥ ला ॥ ७ ॥ आप आपणी नारीने ॥ मु०॥ लेजो सघ ली साथ ॥ ला ॥ जीत दुशे ए शक्तिथी ॥ मु० ॥ कहियो डे जगनाथ ॥ ला० ॥ ॥ प्रशम सामंतें तब ग्रही ॥ मु० ॥ दमा नारी जसु नाम ॥ला ॥ माईव वरी प्रिय नम्रता ॥ मु० ॥ साथ दुई अनिराम ॥ ला० ॥ ए ॥ आर्जव सामंतें ग्रही ॥ मु० ॥ प्रसन्नता नामे नार ॥ ला ॥ सं तोष सामंतें ग्रही ॥ मु० ॥धृति ललना सुखकार ॥ला०॥ १०॥ विम लबोध गुन मार्गणा ॥ मु० ॥ लीधी सुंदर सार ॥ ला० ॥ पुरोहित यास्ति क्यबुदि ने ॥ मु० ॥ लीधी पत्नी तिवार ला॥११॥ शेते सत्यवाणी वधू ॥मु०॥ वेदकता मंत्री नारि ॥ला ॥ नवमंदा पुत्र ते ग्रही ॥ मु० ॥ नारी प्रेम उदार ॥ ला० ॥ १२ ॥ इणि परें सघले साथीयें ॥ मु० ॥ सा थे लीधी नार ॥ ला० ॥ दुकम दुवो साहिबतणो ॥ मु॥ वेगें दूइ अस वार ॥ ला० ॥ १३ ॥ पांचे हथीयार बांधिया ॥ मु०॥ जगमग ज्योति अपार ॥ला ॥ उज्ज्वल गुक्त ध्यान ॥ मु०॥ हथियारमा शिरदार ॥ ला० ॥ १४ ॥ जहर जोसण गुरुशीख ते ॥मु० ॥ पहेर। रदा काज ॥ ला०॥ सकल सजाइले करीमु०॥गमन करे माहाराज ॥ला॥१५॥
॥ दोहा ॥ ॥साधु संयम गजराज दृढ, वरदायी वड वीर॥प्रवचन पुरथी चालिया, साथ वड वडा धीर ॥१॥ मोह महीपति जीपवा, शूरा पूरा साथ ॥ वीर बलें धरता थका, जय लक्ष्मीना नाथ ॥ २ ॥ नव नव गुणगण नूमिका, आक्रमता तिणि वार ॥ पसरी कीर्ति दहदिशे,हरख्यां लोक अपार ॥३॥
॥ ढाल दशमी ॥ ॥पास जिणंद जुहारिये ॥ ए देशी ॥ वरदायी वीर गायें,जग संघले यशवासो रे ॥ हिंसक चोर नासी गया, तम नासे सूर प्रकाशो रे ॥ व० ॥१॥ मिथ्यान्रम दूरें गया, हवे कपट क्रिया रही दूरो रे ॥ अपूर्व करण करतो हवे, प्रतप्यो निज तेज पंमूरो रे ॥व० ॥२॥ नूर नाविक जट क टकमां, आवीने नेला थायो रे ॥ वाहलें जिम नदियां वदें, रिपु जीपण सबल उपायो रे ॥व० ॥३॥ गाम नगरनां नेटणां, नव नवला सम रस लेवे रे ॥ नमता खमता तसु देखीने, उपदेश ते शिरपाव देवे रे ॥ ७ ॥ ४ ॥ मंत्री सघलाने कहे, सुख थाशे धरो वीर आयो रे ॥ मोहतणो नय