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श्री मोदविवेकनो रास.
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जार ए ताहरो रे, बुद्धितणो नंमार ॥ स्वसमय परसमय जाल बे रे, रिपु दल नार उतारो रे ॥ सु० ॥ १० ॥ सामायिक यादें करी रे, यावश्यक नि धरि ॥ ते तु पुरोहित प्राखियो रे, तेहने मत वीसारो रे || सु० ॥ ११ ॥ दशविध यति धर्म हाथिया रे, फोजोना शणगार | शीलंग रथ ते रथ नला रे, सज्या सहस ढारो रे ॥ सु० ॥ १२ ॥ नव नव तप नेद तुरंग ले रे, तीखा तेजी वेग || ते ऊपर बेसी करी रे, दीपावे निज तेजो रे ॥ सु०॥ १३॥ शुभ परिणाम ते सावता रे, पायक प्रौढा पमूर ॥ तु मुख यागे र नि डेरे, राखे आप हजुरो रे ॥ सु० ॥ १४ ॥ प्रायश्चित्त ते केम बेरे, तेहने जे साथ || घायलने ए सज करे रे, सिद्धि सखरी जसु हाथो रे ॥सु ० ॥ १५ ॥ राणी वेदु साथ जे रे, जे बे बुद्धिनिधान || नारी जाए न परिहरे रे, कुण शूरो ए समानो रे ॥ सु० ॥ १६ ॥
॥ दोहा ॥
॥ इम सुणी वीर विवेक हवे, यावे नारी पास || ाखे सुंदरी सांन लो, धरि मनमां उल्लास ॥ १ ॥ जिनवर वचन हुई बे, नारी जो सा
य ॥ तुमचो श्यो आलोच बे, स्त्री बोली सुरा नाथ ॥ २ ॥
॥ ढाल नवमी ॥
ज्युं
॥ वाडी फूली यति जली ॥ मन नमरा रे ॥ ए देशी ॥ कर जोडी कामिनी कहे ॥ मु जमरा रे ॥ सुए साहिब जरतार ॥ लाल मुक्त जमरा रे ॥ कटक यात्रा जणी थें चव्या || || में पण याहरें जार ॥ जा० ॥ १ ॥ तनु बाया ॥०॥ केड न मूकुं खाज ॥ ला०॥ चंङ्कला चंद साथ बे ॥ ० ॥ वादल सायें गाज || ला० ॥ २ ॥ साहिब बाग समान बे ॥ मु० ॥ में वे विस्तार ॥ ० ॥ थें सरोवर नीरें नया ॥ मु० ॥ में कमलिनी सु खकार ॥ जा० ॥ ३ ॥ तुं जीवन तुं खातमा ॥ मु० ॥ तुं श्रम प्राणाधार ॥ ला० ॥ तुम विरहो न खमी शकुं ॥ मु० ॥ देखी रह्यो किरतार ॥ ला ॥४॥ शक्ति मारी देखो ॥ मु० ॥ रिपुदल नेलो जेथ ॥ ला० ॥ शूरा पूरा वे खशे ॥ मु० ॥ कसवटी अमची तेथ ॥ ला ॥ ५ ॥ खवर नारी सम डुं नहिं ॥ मु० ॥ राजसुता रजपूत || ला० ॥ रिपुदल तृणसम लेखवां ॥ मु०॥ निज घर राख्यां सूत ॥ ला० ॥ ६ ॥ वीर विवेक खुशी ययो ॥ मु० ॥ प्रमदानी सुणि वात ॥ ला० ॥ सामंत सघला तेडिया ॥ मु० ॥ एह वि