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श्रीमोदविवेकनो रास. वे फूलने देवा, करे वीर विवेकनी सेवा ॥ १४॥ वर माला कन्यायें घाली, पासें उनी आवे बाली॥ सखियां ए प्रवचन माता, तसु उपनी अधिकी शाता ॥ १५ ॥ हर्षित दूत्रा अति प्राणी, तरष्यां ज्युं लाधे पाणी ॥ ति हां परम प्रमोद प्रकाशे, गुन नावना नाव निवासे ॥ १६ ॥ परसंगतणो दु त्यागी, सूधो मुनि मुख्य वैरागी ॥ संयमस्त्री परणी नारी, अरि जीप पने दुशीयारी॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ चोरी चढवानी हती, होंश घणी मनमांहि ॥ पूगी तेह विवेकनी, धरि जिनवरनी बांहि ॥ १ ॥ तीन जुवनमें यश थयो, सारो हे संसार ॥ नाग अधिक ए वीरनो, लाधी संयम नार ॥२॥ प्रेम घणो प्रमदा धरे, प्रीतमझुं रसरंग ॥ विलसे वीर विवेकयुं, अनुपम सुख अनंग ॥३॥ वासु देव वली चक्रवर्ती, सुरपति नरपति द्वंद ॥ एहना सुखथी पण अधिक, सुख शोना आनंद ॥४॥
॥ ढाल सातमी॥ ॥ श्रीजिनप्रतिमा हो, जिन सरखी कही ॥ ए देशी ॥ वैरागी सौना गी हो, वीर विवेक ने, निरुपम गुण मणि राशि ॥ उत्तम आतम हो, निज बल फोरियो, अंतर वास सुवास ॥ वै० ॥१॥ ज्ञानावरणी हो, कर्म उदय करी, दोय परिसह धार ॥ दर्शन मोहथी हो, एक परिसहो, वेदनी थाय अग्यार ॥ वै॥ २ ॥ एकज होवे हो, अंतराय कर्मथी, चारित्र मोहथी सात ॥ एहवा परिसह हो, बाविश ऊपजे, सहे खमे दृढगात ॥ वै० ॥३॥ पंच महाव्रत हो, मेरु नपाडिया, तृण जिम न गणे नार ॥ बलवंत म होटो हो, रिपुदल जीपवा, चरण करण हथियार ॥ वै० ॥ ४ ॥ दिन दि न अधिको हो, संयम नारीयुं, अधिक अधिक सस्नेह ॥ तप जप तेजें हो, दीपे अति घj, क्रोध दावानल मेह ॥ वै० ॥ ५॥ करवतनी परें हो, त्रिवट दोहिली, शरणे राखणहार ॥ जंगम स्थावर हो, समनावें करी, राखे चित्त मकार ॥वै०॥६॥क दिन आवी हो, जिनपति वीनव्या, दुकम करो महाराज॥ अरिदल नांजी हो, नव नव नयहरुं, वालुं शिवपुर राज ॥ वै० ॥ ७ ॥ समयें देखी हो, जगवंत नाखियो, न करो ढील लगार ॥ मोह महीपति हो, हवे तूं जीपसी, नहिं ले विघ्न विकार ॥ वै० ॥ ७ ॥