________________
श्री मोदविवेकनो रास.
॥ दाल खामी ॥
॥ चतुर सनेही मोहनां ॥ ए देशी || मोह महीपति सांनलो, बीज ली तिथि जोय रे ॥ चन्ड् उदय दूयां थका, गोधूलिक गुन होय रे ॥ मो० ॥ १ ॥ माततणे पाये नमी, तिलक करायो हरखी रे || लीधी मा ता बननी, याशिष अधिकी निरखी रे || मो० ॥ २ ॥ खादेश ताततणो ह्यो, नाइथं बाहु मलिया रे ॥ प्रेमें मित्र कलत्रं, लोचन दुवे गलगलियां रे ॥ मो० ॥ ३ ॥ पापश्रुत नट ए जलां, बिरुद नणीजें सारो रे ॥ कुमित्र प्रसंग मातंग बे, तसु पर बेशी कुमारो रे || मो० ॥ ४ ॥ चतुरंगी सेनाग्रही, वड वडा यो सार्थे रे || शूरा पूरा शोजता, जयलक्ष्मी घरे हाथे रे || मो० ॥ ५ ॥ काम ती कटकी चढी, तिहां नारीसुख शूरा रे || हास्य विलास देतें करी, अधिका सोहे सनूरा रे || मो० ॥ ६ ॥ बाण ते कामक टाकू बे, चूहांको धन लीधो रे ॥ ढाल ते घुंघट पट धरी, बाण चलावे सीधो रे || मो० ॥ ७ ॥ रोदन मोदन मदनना, नव नव रंग तरंगो रे ॥ मोहें सुर नर मोहिया, चूक्या इसने संगो रें ॥ मो० ॥ ८ ॥ पशु पंखी प एजीपियां, एकेन्द्रिय पण जीत्या रे ॥ किंकर काम तथा घणां, पसस्या सबल अनीता रे ॥ मो० ॥ ए ॥ इन्द्राणी रूपें करी, इन्ड्ने जीत्यो का मोरे ॥ वीर जीपवा, चक्रवर्ती निरामो रे ॥ मो० ॥ १० ॥ अ नमी या घरे नहिं, वांकी टेढी पागें रे || जोधा राव घणा अबे, पण किंकर स्त्रीखागें रे ॥ मो० ॥ ११ ॥ त्रिवल्ली त्रिपथ कहीजियें, नारी न दरें होवे रे || काम पिशाच तिहां बजे, मूढा नर जे जोवे रे || मो० ॥ १२ ॥ पाधोटे पंमितनली, शुचिने रुचिकर हसतो रे ॥ खरध करे धीरज नली, जिहां हिां ए धसमसतो रे । मो० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥
ए
॥ कामतली फोजां फरी, चिहुं दिशि सारे जग्ग ॥ कोई शर सांधे नही, योषित जोधें नग्ग ॥ १ ॥ ब्रह्मापुर कानें सुयो, राय प्रजापति हो य ॥ ब्रह्म तेज सब जगतनो, जनक कहीजें सोय ॥ २ ॥ एहनो में टालो करो, या या वा ॥ कोइ कालनो मोकरो, बोडो ब्रह्मा जाए ॥३॥ ॥ ढाल नवमी ॥
॥ राग धमाल ॥ अथवा || पर घर गमन निवारियें ॥ ए देशी ॥ ईलि