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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. प्रीति वली, रति नली नारजा,युचनी सिक्ष,अब जात वारु ॥वा॥१४॥ नारिनी गोत, ते जोगणी ताहरे, मंत्रनी तंत्रनी,घात जाणे ॥ कुपथ कथा ग्रहे, लोकने नोलवे, रिपुतणा सैन्यनी, वात आणे ॥वा॥१५॥ गीतनी रीति ने, नाटक नाचतां,हाव ने नाव, प्रमदा विलासा ॥ चारु मणिहार, हथियार साथें धरे, मुखतणा मागिया, होय पासा ॥ वा० ॥१६॥ हास्य ने जूवटो, बे जणा ताहरा, अंगना चंग, रखवाल राखे ॥ रामत अति घणी,तेह दासी नली, काम ने काज, सब तासु पाखे ॥वा॥१७ ॥ सु ख अनिमान, सन्नाह तुं पहेरजे, नेत्रने पान, कपाटोप धरजे ॥ विषय इं श्यितणा, चंचल हय घणा, मत्त उन्माद, मातंग वरजे ॥वा० ॥१७॥ रथ घणा साबता,जेह मनोरथा, पायक लायक, प्रेम पूरा ॥ नायका सा यका, वरसती फोजमां, शोनशे जीपशे, शत्रु यूरा ॥वा ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ मोहराय इणपरें कह्यो, मदनतणो परिवार ॥ राय विवेकने जीप वा, शीख दिये सुविचार ॥१॥ पुत्र सुपूत तुं माहरे, राजनीतिनो जाण ॥ मति वेशासे केहने, ए माहारी जे वाण ॥ २ ॥ थोडं बोले बहु करे, अ ति उत्सुक मन होय ॥धीर वीर होवे खरो, बल बल करजे जोय ॥३॥ जोगी जंगम जटिलने, नर नारी तिर्यंच ॥ तरुण वृक्षने पीडवे, कां न करे खल खंच ॥ ४ ॥ दत्री मा न आदरे, याचक लाज न कां ॥ वेश्या प्रेम धरे नहिं, काम अर्थ किम थाय ॥ ५॥ अवसर विण गुण दोष , दोष दुवे गुणपोष ॥ स्नान समे वस्त्र मूकिये, वांको डुम लहे तोष ॥६॥ जग सघलो जुगतें फरी, साधे सघलां गाम ॥प्रवचनपुर मत पेसजे, अरि हंत राजा नाम ॥७॥ शूरवीर तेहज खरो, जोवे वाम विशेष ॥ पाडे मयग ल जीतने, गिरि पाडे नहिं देख ॥ ७ ॥ एक गाम जीतो नहिं, कां नहिं य शनी हाण ॥ वन धन बाया नहिं नसे, इक तरु बेये जाण ॥ ए॥ पिता शीख इणि परें कही,शिर पर धारी मयण ।। चारवाक पंमित नएी,बोलावी वदे वयण ॥ १० ॥ कुंवर जणी वढवातणो, मुहूरत जोवो सार ॥ चार्वा क हवे बोलियो, सुण साहिब सुविचार ॥ ११ ॥ नोग दीर तिण दीर क लि, गुरु नारी धिक्कार ॥ वृष्टि वाउलमें अपशकुन, एता गमन निवार ॥१२॥