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श्रीमोदविवेकनो रास. क उच्चार रे ॥ २० ॥ पण अंतर नेद्यो नहीं ॥ २० ॥ आत्म प्रत्ये प्रतिका र रे ॥२०॥ पु०॥४॥ दीधी बदुली देशना ॥२०॥ पररंजनने काज रे ॥९॥ मिथ्यानाव मूक्यो नहिं ॥ २०॥ महेर करी मोहराज रे ॥२०॥ पु०॥ ५॥ श्रावकनो नेख आदस्यो ॥२०॥ उच्चरतो नवकार रे ॥२०॥ निशि कृषि शाला सूश्ने ॥२०॥ उपधि लई कीध विहार रे ॥ रं॥पु॥६॥ परजातें पूजा रची ॥ २० ॥ मुखो मुखयुं लाय रे॥॥धातु रत्न प्रतिमा ग्रही ॥२०॥ नातो स्वामी पसाय रे ॥ २० ॥ पु० ॥ ७॥ याचना मिष करी पेखियो ॥ रंग ॥ घर घर दी। प्राचार रे ॥२०॥ कूड कपट बन के लव्यां ॥२०॥साहिब सान्निध्यकार रे ॥२०॥पु०॥७॥ नर नारी वह
तस्यां ॥२०॥ नव नवा कीधा नेख रे ॥२०॥ हवे पुर वर्णन सांजलो ॥ २० ॥ दीठो जेह विशेष रे ॥२०॥ पु० ॥ ए॥ नगरीने चिहुं दिशि अडे ॥ २०॥ नीयतिको प्राकार रे ॥२०॥ खातिका धर्मनी वासना ।। २० ॥ प्रासाद परिणाम सार रे ॥२०॥ पु०॥१॥ लेश्या धवली बोहगुं ॥२०॥ उज्ज्वल कीधी तेह रे ॥२॥ उंची नूमि निवास ने ॥ २० ॥ साधु जन धर्म नेह रे ॥ २० ॥ पु०॥ ११ ॥ चार नेद धर्म ध्यानना ॥ रं०॥ तेहज पोल्यो चार रे ॥ २० ॥ अनुप्रेक्षा चारे अ ॥ २० ॥ दृढ किमाड उदार रे ॥२०॥पु० ॥ १२ ॥ इन्५ प्रशंसे जेहने ॥२०॥ श्रीसंघ महाजन तेथ रे ॥ २० ॥ योगासन बाजार ॥२०॥ पुण्य करिया| जेथ रे ॥ २० ॥ पु०॥ १३ ॥ समता शेरी मोकली ॥२०॥ बाधा न लहे कोय रे ॥२०॥ ब्रह्मपुरी सोहे नली ॥ २० ॥ सुखियां सघलां लोय रे ॥ २० ॥ पु० ॥१४॥ झान सरोवर शोनतूं ॥ २० ॥ गुप्ति नली ने पाल रे ॥ २० ॥ हंस घणा क्रीडा करे ॥ २० ॥ शान्ति सरस रस शाल रे ॥ २० ॥ पु० ॥ १५ ॥ जीव दया देवी नली ॥२०॥ नगरतणी रखवाल रे ॥रं० ।। सखरी चरचा कू पिका ॥रं ॥ घर घर नयन निहार रे ॥ २० ॥ पु० ॥ १६ ॥ आत्मनाव ना जावतां ॥२०॥ षट् ऋतुहीका चात रे ॥२०॥ केहा गुण तसु दा खq ॥ २० ॥ दीनां यावे धात रे ॥ २० ॥ पु० ॥ १७ ॥ ते आगल पुर ता हलं ॥२०॥ दीन हीन दुःख जाल रे ॥२॥ कांश शोना धरे नहिं ॥२॥ रतन पागल ढेरखाल रे ॥२०॥ पु० ॥१७॥