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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. कुःख पाम्यो नानो थयो, पर हथ दून जोय ॥ हलाहल विष तिल समुं, कुःखदायी क्युं न होय ॥ म०॥ ७॥ कबश्क फिरतां जायसी, प्रवचन पु रमां वास ॥ तो हाथे थावे नहिं, जिम सिंह गिरिमां निवास ॥म ॥॥ राजनीति मांहे कयुं, वैरी निज वश राख ॥ परवाणी कानें सुणी, दैत्य स मोवड नाख ॥ म०॥ए॥ खरी खबर लीधा विना, साल समान ए था य ॥ खबर जणी चर मूकियें, ए मुफ आवे दाय ॥ म० ॥ १० ॥ मित्र कहे वारु थडे, साहिब एह विचार ॥ तुरत तेडाव्या तिणे कणे, आखे स कल प्रकार ॥ म०॥११॥ पाखंमादिक दंन वली, सखरा सेवक जेह ॥ शीख कहे नृप तेहने, काम करो ससनेह ॥ म० ॥१२॥ पुत्र सहित निट त्ति वधू, किहां नाठी किण नाम ॥ जग सघलो ढूंढी करी, खबर करो अ निराम ॥ म० ॥ १३ ॥ स्वामी वचन शीशे धरी, सेवक चाव्या ताम ॥ शू रवीर साहसिकधरु, स्वामीतां करे काम ॥ म॥१४॥ गाम गाम पुर ते फरे, वन वन तरु तरु तेह॥ वानरनी परें जोवता, स्वामी धर्म सस्नेह ॥ म० ॥१५॥ यत्न करी जूवे घj, पण को न कहे वात ॥ पग पग पूज्या अति घणा, न पडी गुरू तिल मात ॥ म०॥ १६ ॥ फरतां दूर देशांतरें, पुण्यरंगपाटण जाय ॥ वात सकल तिहां किण लही, पण पुरमा न ज वाय ॥ म० ॥१७॥ बाना बाहार ब्रूपी रह्या, को तरुनो ले संग ॥ कोट वाल तिहां नीसयो, चोकी करतो चंग ॥ म० ॥१७॥नाग्य जोग यावी जुडी, दूषणा ऊपर चोट ॥ सिदि दुवे क्युं तेहने, जसु दिलमांहे खोट ॥ म० ॥१॥ कोटवाल सम कालिया, काठा बांध्या तेह ॥ समकित नटने वश कस्या, ताडन तरजन देह ॥ म० ॥ २०॥ मिथ्यामती पाखंम वली, दंन प्रमाद विशेष ॥ समकित शूरें कूटिया, मोहता दास देख ॥म ॥ २१॥ विवेकतणी तिण शुधि लर, ताडन पण लही तेथ ॥ हर्ष विषा द बेदु लह्या, पुण्यरंगपाटण जेथ ॥ म० ॥ २२ ॥
॥दोहा॥ ॥ बाना नाग तिहांथकी, रही न शक्या तिहां तेह ॥ जिम दावानल देखीने, मृग नासे लेइ देह ॥१॥ मोह नणी यावी मल्या, प्रणम्या स्वामी पाय ॥ विलखाणा ते देखीने, मोह वदे चित्त लाय ॥२॥ तुमचो मुख था खेय ने, जागा याव्या बाज॥में आगेंही जाणियो,तुमथी नदुवे काज ॥३॥