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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. धो जेह ॥ सईहणा साची नहिं, नामक नावे तेह ॥ ७ ॥ निकट मुक्ति जे जेहने, ते पण मोह बलाय ॥ सागर कंठे पण रह्यो, पोत चलावे वाय ॥ए ॥ मोहथकी बीये घj, शिवपुर जावणहार ॥ बोलावीने तेहने, क रजे हर्ष अपार ॥१०॥ तूं साथें दूयां थकां, नय नहिं तेहने कोय ॥ गरु ड पंखीथी नासही, जुजंग जाति जे होय ॥ ११ ॥ पहेला पण शिव पुर तो,मारग वह्यो एम॥इणिपरेंराजा थाखियो,तहत्ति कियो सब तेम॥१२॥
॥ढाल शोलमी॥ ॥ वधावानी देशी ॥ वधावो हे वीर विवेकने, जगनाथे हे बापणो जा पी दास के ॥ पुण्यरंग पाटण आवियो, राज्य दीधुं हे मानुं नानु नन्नास के ॥ व ॥१॥ सेवक सखरा थापिया, साथ पूरो हे शूरो सुगुण सनूर के ॥ साहिब दुकम कियो वली, तुऊ ससरो हे विमलबोध पमूर के ॥ वo ॥ ॥ तेहने निजपुरनी धरे, कोटवाली हे दीजें सुखकार के ॥ वनपाल कता मूकशे, मुज वचनें हे न्यायें सुविचार के ॥ व ॥३॥ आदेश लेई तिहाथकी, वीर आयो हे निजपुरने नाम के ॥धर्म ध्यान ध्वज ागलें, मुख आगे हे धागें करि अनिराम के ॥व०॥४॥ माता मन आनंदा, वाल वनिता हे वनिता लीधी साथ के ॥ प्रेमनिधान प्रतीतनी, घरमांहे हे मांहे प्रथम ए बाथ के ॥ व०॥ ५॥ जय जय शब्द दुवे घणा, गुण गावे हे जावें गुणि जन सार के ॥ पुण्यरंग पाटणराजियो, सिम विद्या दे विद्याधर ज्युं तार के ॥व०॥६॥ वाजित गुरु उपदेशनां, अति वाज्यां है गाज्यां गुहिर गंजीर के॥ आमंबर अधिको करी, पुर पेठो हे साथें वडवीर के ॥ व० ॥ ॥ महोटा महाजन आविया, राज मुजरो हे कीधो उदार के॥ आनंद अधिक दुधा घणा, पुरमांहे हे वरत्यो जय जयकार के ॥व० ॥॥ कोटवाल ससरो कियो, प्रवाणी हे जाणी कीध प्रमाण के ॥ ढंढेरो करुणा तणो, पुर फेयो हे फेखो वीरनी आण के॥ व० ॥ ए ॥ दूर कीया पापी नरा, पुण्य धारी हे सारी नगरनो वास के ॥ उष्ट उर्दीत जन काढि या, राख्यो नहिं हे तिहां बसनो पास के ॥व० ॥१०॥ राज्य जलो हवे जोगवे, शिव मारग हे मार्गनुं मुख तेह के।जोलावे नवि साथने, जव वारें हे सारे सुख गुणगेह के ॥ व० ॥ ११ ॥ माताने सुखणी करी, जसु सी खें हैं दुधा नवेय निधान के॥ मन मंत्री पण वेगा, आवे जावे हे प्रम