________________ 36 जैनकथा रत्नकोप नाग बीजो. पट्टे विजयायदानः,सरिर्बनून प्रबलप्रतापः // राशिर्गुणानां किल यस्यवारां, राशेः समानीकुरुते कवींइः // 4 // बनूव सूरिः किल तस्य पट्टे, श्रीहीरपूर्वो विजयोर्जितश्रीः॥ लेने प्रतिष्ठां किलनूयसी यो,नरेंइलमीकतामजलं // 5 // तस्यापि पट्टेऽजनि सूरिराजः, सेनोत्तरश्रीविजयोयशस्वी // ततार जैनागम वारिराशि, नावः स्वबुध्योत्तमनाग्यनाग्यः // 6 // विजयते किल तत्पदसे वया, सुलन रिपदं प्रणयी गुणः // विजयदेवगुरुर्गरिमांबुधि, स्तपगणे ग गने किमु चश्माः // 7 // श्रीधानंद विमलगुरुशिष्याः, श्रीसहजकुशलनामा नः // लुंपाकमतमपास्य, गजमलमिव निर्मलाजाताः // 7 // तेषां च शिष्य मुख्याछाचकवरसकलचंझनामानः // चंशश्व वचनसुधां, वतृषुर्य विबुधव रपेयां // // श्रीशांतिचंशवरवाचकेंश, स्तेषां च शिष्या बहुशिष्यमुख्याः // बनवुरुदामगुणैरुपेताः, प्रनावकाः श्रीजिनशासनस्य // 10 // श्रीमऊंबुही प,प्राप्त निविरचनाचतुराः // येषां बुद्धिं सुरगुरु,रपीह ते विश्वगेयगुनयश , सां // 11 // गीतार्थाः // तेषां गुरूणां गुणसागराणां, प्रसादलेरां समवा प्य चके // अनेकशास्त्रार्थ विचारसारः, परोपकाचकरत्नचंः // 12 // सम्य क्त्वसप्तत्यमलप्रबोध, बालावबोधं पटुनिः सुबोधं // सम्यक्तत्वरत्नप्रवरप्रका श,नामानमेनं, समयानुसारात् // 13 // युग्मं // रस मुनि रस शशिवर्षे, (1676) पौषे शुक्त त्रयोदशी दिवसे // सूरतबंदरमुरख्ये,परमार्हत्संघरमणीये // 14 // इति रत्नचंझनामा चकार बालावबोधमतिसुगमम् // सम्यक्तत्वस प्ततिवर, प्रकरणतत्त्वार्थबोधकरं // 15 // सूर्याचंश्मसी यावत्, यावत्स तधराधराः // यावत्तपागणस्ताव दिदं जयतु पुस्तकं // 16 // इति महोपा ध्याय श्रीशांतिचंगणि शिष्योपाध्याय श्रीरत्नचंगणिविरचित सम्यक्त्व स ततिकाबालावबोधग्रंथः समाप्तः // श्रीरस्तु शुनंनवतु // PathaAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAntan ( 9 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 (1 1 1 1 1 1 1 1 - ANDooGajraGokGRICypiciolo DoGJIGDIGIGRApkcoloose इति श्री दर्शनसित्तरी ग्रंथ समाप्त तत्समाप्तोयं - - जैनकथा रत्नकोषस्य तृतीय नाग समाप्त॥ M oyouyanyooosyorycycayaGycycocuredyomyocmcayaaycycyemoiyonica