________________ श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. ३न्य 6 प्ररूपक सुविहित नट्टारक श्रीविजयदेवसूरि प्रमुखनी आज्ञानुं आराधन कीy,तेणें देवनी आझार्नु पण आराधन की,तेथी “गुरुयाराहणेकुणह जत्तं” ए पद कह्यं // यतः // महागरा बायरिया महेसि, समाहि कामे सुयसीलबुधिए // संपानि कामेषुत्तराई, आराहतोसहधम्मकामी // 1 // ___ (जेण के०) जेणे गुरु थाझा आराधन यत्ने करी कीर्छ तेणे (शिवसुखबी यं के०) शिवसुख जे मोद सुख तेनुं बीज एटले कारणनूत एहवी (दसण सुकी के०) समकेतदर्शननी शुदि जे निर्मलता ते प्रत्ये (धुवंलहह के०) निश्चे पामी. अने जेवारें जीवने समकेतशुदि आवी तेवारे ते जीवने अ वश्य मोक्षसुख प्राव्यु. केम के जे जीवने दायिक समकेत आव्युं ते जी व उत्कृष्टा चार नव, संसारने विषे करे // यतः॥ तश्य चउने तेमिउ, न वम्मि सियंति सणेखीणे // जं देवनिरय संखाचरम देहेसु ते टुंति // 1 // दर्शनशुद्धि पण तेवारेंज कहीयें, के जेवारें जीव दायिक समकेत पामे. शहां शिव एवं पद प्राणवे करी ग्रंथकारें ग्रंथने विपे अंतने पावें मंगलाच रण कीधुं // यतः // मंगलादीनि मंगलमध्यानि मंगलावसाना निशास्त्राणि विपामुपादेयानि निःश्रेयससाधकानिनवंतीति // 70 // ॥इति श्रीतपागहालंकार सार जट्टारक श्रीहरि विजयसूरीश्वर पट्टालंका र हार सार नट्टारक श्री 5 श्रीविजयसेनसूरीश्वर पट्टप्रनाकर नहारक श्री 5 श्रीविजयदेवसूरीश्वर विजयमानराज्ये महोपाध्याय श्रीसकलचंगणि शिष्योपाध्याय श्रीशांतिचंगणि शिष्योपाध्याय श्रीरत्नचंगणिनिः श्री सम्यक्त्वरत्नाधिष्ठानश्रीसुरतबंदरादिचतुःसंघस्याष्टम्यादिपर्वसु श्रीसम्यक्त्व सप्ततिका प्रकरणबालावबोधे सम्यक्त्वस्थान पट्स्वरूपनिरूपणोनामा aa दशोधिकारः समाप्तः // 12 // // प्रशस्तिश्लोकाः // श्रीवीरपट्टांबुज नास्करानः, श्रीमत्सुधर्मागणनृद्दनूव // अद्यापि वाणी प्रसरीसरीति, यस्य प्रनोः पंमितवक्रवासा // 1 // बनूव तत्पट्ट परंपरायां, सूरिर्जगचं इति प्रसिदः // लेने तपोगन इति प्रसिदि, यस्माकुणोयं प्रथि तावदातः // 2 // परंपरायामपितस्य जातः, साधुक्रियामार्गविकासनास्वा न // आनंदपूर्वो विमलाग्रसूरि, जगजनानंदकरः प्रसिदः॥३॥ तस्यापि