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शएम जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. स्वामी विचार कह्या तेवाज कही संनलाव्या. इं३ वली विशेष ज्ञान जोवा माटें पूज्युं, के स्वामी ! हुँ १६ बु अगसण करवा वांबुं बु. माटें म हालं आयुष्य शेष केटलुं ले ? एवं कहीने हाथ देखाडवा मांझयो तेवारें आचार्य श्रुतोपयोग दे पद, मास, वर्ष, पल्योपमादिकनी वृद्धि करतांबे सागरोपमायु कयुं, ते सांजली इंडें कयुं महाराज! मनुष्यनुं एटलुं आयुष्य क्यांथी होय? आचार्य कर्तुं मनुष्यनुयायुष्य एटलुं न होय पण तुं तो इं बो. एवो बाचार्यनो ज्ञानातिशय देखी हर्षित थयो थको इंऽ बोल्यो, स्वा मी! धन्य ने तमारा झानने जेना श्रुतझाननी सीमंधरस्वामीये पण सादी पूरी,एम कही घणी प्रशंसा करी कहेवा लाग्यो,स्वामी! मुज सेवकने का कार्य प्रसाद करो. आचार्य कर्तुं जे कार्य करवानुं हतुं ते करी बेठा छैयें, बीजुं निःस्टहीने वली गुं कार्य करावq होय ? एवं आचार्य कहे थके य ति सर्व गोचरीयें गया हता, तेमने जाण कराववामाटे इंघ महाराज न पाश्रयनुं बारj फेरवी गुरुने वांदीने स्वर्ग गया.
केटलिएक वेला पनी यतियो वहोरी आव्या पण उपाश्रयनुं बार[ देखे नहीं, तेने गुरुयें आवी देखाड्युं अने इंश् आव्या संबंधि सर्ववृत्तांत यति यो आगल कही संनलाव्युं. यति तथा श्रावक लोक सर्व आश्चर्य पाम्यां. श्रीजिनशासननी प्रनावना थश्. एम जिनशासननी घणी प्रनावना करी आयुनो अंत आव्यो जागी अनशन यादरी आहीं मनुष्योने प्रतिबोधी पली देवसनामां जइ तिहां देवताने प्रतिबोध देवा गया. ए प्रनावनारूप स म्यक्त्वनुं पांचमुं नूषण तेनेविषे कालिकाचार्य- दृष्टांत कह्यु.
यहां एक शंका रहे डे के कालिकाचार्यजी त्रण थया , तेमां प्रथम श्रीविक्रमाजितना संवतनी आगल श्रीपन्नवणाजी सूत्रना कर्ता जे कालि काचार्यजी महाराज थया , तेमने इंऽमहाराज निगोदना विचार पूबवा आवेला , एवं महारा सांजलवामां आव्युं बे, अने या कालिकाचार्यजी महाराज, लग जग विक्रम संवत्ना एए३ वर्षे विद्यमान हता, माटे तेम नुं तथा एमर्नु अगीयारशे वर्षनुं लगनग यांतलं डे, तेम बतां जे प्रत उप रथी ए पुस्तकमें बाप्युं बे, ते प्रतमा ए वात लखेली हती तेथी में बापी जे.पनी जेम बीजी प्रतोमां अथवा अन्यग्रंथोमां वृक्षवचन होय ते प्रमाण .
इतिश्री तपागबालंकारोपाध्याय श्रीशांतिचं गणिशिष्योपाध्याय श्रीरत्न