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श्रीमोदविवेकनो रास. ण पेदास हूय, तिपथी ए फुःख जाय ॥५॥ नानाने पण सुख करे,बेसाडे निज राज ॥ माया मोह कुबुदिने, काढि समारे काज ॥६॥ श्म आलोची मंत्रीने, बोलावी कहे एम ॥ स्वामी धर्मधर तुं सही,धरजे ढुकढुं तेम॥७॥
॥ ढाल बही॥ ॥ मेरी बहेनी कहे कोई अचरिज वात ॥ ए देशी ॥ मुफ हर्ष दून ने ए सही, सुण मंत्री कहूँ तेह ॥ पुत्री निवृत्ति के माहरी, परणीजें सस्नेह ॥ मंत्री मानजे ए माहरो उपदेश, अनुपम सुख लहेश, हर्षित होशे नरेश ॥मंत्री०॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ रत्नकूखी मुफ पुत्रिका, निवृत्ति एहवे नाम ॥ परणावं डं तोजणी, होशे वंडित काम ॥॥२॥ मंत्री मनमांहि चिंत वे, तेलियें केम करी लाल ॥ आदर दे घर श्राणियें, नवि कीजें पूल गाउ ॥ मं० ॥ ३ ॥ म जाणीने मन मंत्रवी, परणियो निवृत्ति नन्नास ॥ बिदु जामिनी सुखयुं रमे, नव नव रंग विलास ॥मं०॥४॥ इम जाणीने मन मंत्रवी, पडवो वारो वास ॥ इक शंखिणी इक पद्मिनी, मुर्गध इक फुलवास ॥ मं० ॥ ५॥ जूजू प्रकृति मिले नहिं, पश्चिम प्राची जोय ॥ अस्त उदय संगतिथका, सूर्य सम पियु होय ॥ मं० ॥ ६ ॥ वारो दुवे जब प्रवृत्तिनो, तब करे पाप अघोर ॥ निवृत्तिने वारे थये, पाप खरे अति जोर ॥ मं० ॥ ॥ ७ ॥ उर्बुढि माया बे मली, गुण वर्णवे मुख एम ॥ तुं वडनागी मंत्रवी, बे स्त्री परण्यो प्रेम ॥ मं० ॥॥ वनना होवे उर्लना, गुण करी आप समा न ॥ सरिखा सरिखो जो मले, तो करे सद् गुणग्राम ॥ मं० ॥ ए ॥ तम गुण सरखी प्रवृत्ति , अति चपल चतुरा नार ॥ सकल क्रियामां पंमिता, कामकद सिरदार ॥मं०॥ १० ॥ ए सुबुदिनी जे बोकरी, आलसुनाका र ॥ कर्महीण दीसे अने,क्रियागुण न लगार ॥॥११॥ तुज गुणथकी विपरीत , तो किस्युं आदर मान ॥ अजगर ज्युं बंधी रहे, न करे लौकि क काण ॥मं०॥१२॥ शांत दांत सरिखी दीसती, क्युं नहिं लाव ने साव॥ कामकद माणस नहिं, तेहगुं केहो नाव ॥मं०॥ १३ ॥ राज बीज वली मोह , माया तणो अंगजात ॥ एशुं प्रीत घणी करो, होशे जगतमें ख्या त ॥मं०॥ १४॥ को पर्व अवसर जाणीने, निवृत्तिने बोलाय ॥ क्षण एक तेहगुं सुख लहो, तुरत करो विदाय ॥७॥१५॥ बेउ नारीएम.मंत्रवी, सुख जोगवे संसार॥धर्ममंदिर कहे ते सुणो,विवेकतणो विस्तार ॥०॥१६॥