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श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. तिहां विद्याने बलें करी आचार्ये ते शिष्यनां पात्रां विविध प्रकारनी सु जद नदिकायें जयां, आकाशमार्गथी आवता हता तेने वतांज या काशथकी आकर्षी शिलातलने विषे श्रास्फाल्या थका नांगीने कटके कट टका थइ नूमिने विषे पज्या ते देखीने पहेलो कुशिष्य तथा उष्ट बौहोते सर्व जेम वायराथी आक नाश पामे तेम नाशिगया. __पनी आर्यखपटचार्य बौदना चैत्यने विषे गया तिहां बौधोयें कह्यु के प्रतिमाने नमस्कार करो प्राचार्य को नया थका बोल्या के अरे बौछो तमें सत्वर उठीने महारे पगें लागो. एवं कहेतां वारज बौदेव बौदिस त्त्वनी प्रतिमा श्रावी गुरुने पगें लागी ते केटलाएक दिवसपर्यंत तेमज गुरुना पगमा लागी रही एवो चमत्कार देखीने घणा बौक्लोक प्रतिबोध पाम्या. केटलाएक दिवस तिहां रहीने गुरुयें अन्यत्र विहार कस्यो.
हवे पामलीपुर नगरने विषे वाहड नामें राजा ते केवल विप्रनक्त ने ते राजा सर्व दर्शनीने तेडीने कहे के तमें विप्रने पगे लागो तो महारा न गरमांहे रहो नहींकां नगर मूकी चालता था एवा राजाना आदे शथी सर्व दर्शनी विप्रने पगे लागीने तिहां रह्या. परंतु जैनना साधु ये सात दिवसनी अवधि मागी ते राजायें पण आपी पड़ी उपाश्रयें भावी विचार करवा लाग्या के हमणा आपणामां जैनशासननो प्रानाविक थाय एवो कोण ?
तेवारें एक शिष्य बोल्यो जे खपटाचार्यना शिष्य महेंश उपाध्याय हाल आपणा देशमां पधाया , ते प्रामाविक ले ते सांजलीने श्रीसंघे ते मने तेडवामाटे बे यति मोकल्या. यतिथे तिहां जर सर्व वार्ता कही सं नसावी तेवारें महें नपाध्याय पण ते यतियुगलनी साथें पामलीपुरें याव्या तिहां आहार करी स्वस्थ थइ घणा यतियोने परिवारें परवस्या थ का करवीर वृक्नी लांबी बे काम हाथमा राखी राजछारें गया राजा प ण सिंहासने यावीने बेग. राजानी बेतु बाजुयें पलोंठी वाली दस्त कर्णे ललाट प्रमुख अंगनेविषे लांबां लांबां टीलां काढीने ब्राह्मणोनी पंक्तियो बेठी बे, उपाध्यायने राजायें कह्यु के ब्राह्मणोने नमस्कार करो. उपाध्यायें क ह्यु, कई पंक्तिना ब्राह्मणोने नमस्कार करीयें ? राजायें कह्यु, ब्राह्मण सर्व पूजनीयज डे माटे बेदु पंक्तिना ब्राह्मणोने पगें लागो. तेवारें महें। उपा