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जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. वशे ए, वंदन कारण धाय ॥ म ॥ ४ ॥ गामनो चोधरी थावशे ए, म हिमा देखण काज ॥ म ॥ चमत्कार चित पामशे ए, धन्य धन्य कृषि राज ॥ म० ॥ ५॥ जाप होम कीजें घणा ए, एको न आवे देव ॥ म॥ अणतेड्या आवी करी ए, लाख झानें करे सेव ॥ म ॥ ६ ॥ देवे नहिं लेवे नहिं ए, बादर न करे कोय ॥ म० ॥ दर्शन स्वप्नं दोहिनु ए, ते सुर सेवक होय ॥ म०॥७॥प्रजुता लवला. करी ए, मानव मान करे॥ म०॥ अनुपम प्रजुता एहनी ए, समता दमता धरे ॥ म०॥७॥ रूडो रूप सोहामणो ए, यौवन लावण्य जोर ॥ म० ॥ तप जप तेज दिवाकर ए, कष्ट क्रिया पण घोर ॥ म० ॥ ए॥ एम उलसित परिणाममु ए, नाव जगति मन काम ॥ म ॥ चरण कमल वांदी करी ए, बेसी यथायोग्य ठाम ॥ म०॥ १०॥ देशना दे रह्या पनी ए, एकांत वेला पाय || म॥ ग्रामणीकर जोडी करी ए, पूबशे चित्त लगाय ॥ म० ॥ ११ ॥ तुम दर्शन थी पामिया ए, विस्मय वारंवार ॥ म०॥ तमें कोण क्याथी याविया ए, एकदि केहे प्रकार ॥म० ॥१२॥ ते विरतंत कहीजियें ए, ज्युं मन आ नंद थाय ॥ म०॥ वचन सुधारस पीजियें ए, नवनी प्यास बुजाय ॥म० ॥ १३ ॥ देवानुप्रिय सनिलो ए, महोटुं चरित्र २ एह ॥म॥ स्थिर मन करि गुन जावयुं ए, धर्म उपर धरि नेह ॥ म० ॥१४॥ प्रथम खंम पूरो थयो ए, साते ढालें सार ॥म०॥ दयाकुशल पाठकवरु ए, तमु सान्निध्य सुखकार ॥ म० ॥ १५ ॥ धर्ममंदिर गणीयें कह्यो ए, पद्मनान अधिकार ॥ म० ॥ सुणतां जणतां शिवकरु ए, श्रीसंघने जयकार ॥ म० ॥ १६ ॥
इतिश्री प्रबोधचिन्तामणौ ढालनाषाप्रबन्धे पद्मनानजिनचरित्र धर्मरुचि मुनिमोक्षाधिकार नामा प्रथमखमः संपूर्णः ॥२॥ ॥ अथ दितीयखंग प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ हवे बीजे खंम बोला, बातमनो अधिकार ॥ आलस उंघ तजी क री, सुजो नवि चित्त धार ॥ १ ॥ ग्रामणी पूब्यो तेहनो, उत्तर आखें एम ॥दि सिदि जिनवर लही, धर्मरुचि कहे तेम ॥ २ ॥ स्थिर वस तां संसार पुर, नामें नगर कहाय ॥ अनंत जीव लोकें नयो, घृतघट करें