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श्री मोदविवेकनो रास.
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उनी न्याय ॥ ० ॥ शाखा हो शाखा हो, बेद्यां फिर पल्लवधरा हो ॥ १० ॥ जीत्या हो त्रणे लोक ॥ जीत्या० ॥ एहवो हो एहवो हो, मन्मथ तें सुलियो दशे हो | तेहनो गुरु हुं तात ॥ ते ॥ जाणे हो जाये हो, जूठो क्युं या तम कसे हो ॥ ११ ॥ वज्र गदा हथियार ॥ वज्र० ॥ मुऊने हो मुकने हो लागे नहिं ए सदा हो ॥ मंत्र तंत्र विष व्याल ॥ मंत्र ॥ नावे हो नावे हो, मुफ नेडा कोविदा हो ॥ १२ ॥ में बहुलां रण कीध ॥ में० ॥ काri हो काri हो, तरकस हाथ बे माहरा हो ॥ तुं शीलो सुखकार ॥ तुं० ॥ कोमल हो कोमल हो, पुजल तन ने ताहरां हो ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ मोह राय गर्दै चढ्यो, वली बोले सुण वीर ॥ बहु वेला तुम हाथ मां, पहिराया जंजीर ॥ १ ॥ श्रादिम चक्री सुत जलो, नाम मरीच विख्या त ॥ सागर कोडाको डिमें, फेयो एम कहात ॥ २ ॥ रसनेन्द्रिय मुक सेव कें, कंमरीक तुम वीर ॥ कृणमांहे बांधी करी सातमी मूक्यो मीर ॥ ३ ॥ सत्यकी श्रेणिक यदि दे, तुम सेवक यति सार || अविरति माहरी नारि यें, बांधी लिया तेवार ॥ ४ ॥ जीत्या केता यखियें, तुं पण नागे तेथ ॥ लाज तजी खायो वली, इयुं खाटिश तुं एथ ॥ ५ ॥ इम सुणी वीर विवे क हवे, उत्तर या एम ॥ निज मुख इंड् प्रशंसतो, लघुता न लहे केम ॥६॥ ॥ ढाल ग्यारमी ॥
॥ प्रभु नरक पडतो राखी, वाणी जाली ॥ ए देशी || राजा एसा वच नन बोलिश, गर्वतं तुं गेह हो ॥ शारद जलदनी गाज सरिखी, वाणी जाली एह हो ॥ रा० ॥ १ ॥ मादल महोटा नाद करे बहु, अंतर पोला जाण हो ॥ तें साचा ते नहीं काचा, एह वडानी वास हो ॥रा० ॥२॥ पूर्ण कलश नां बलके जरियो, गला ठींकर जोइ हो || उबले तोय अल्प पामीने, ए उत्तम तुक होइ हो ॥ रा० ॥ ३ ॥ पाकां पीपल पानतली प रें, खड खड करे तुं खाज हो ॥ ते खडखड हुं खाज उतारुं, जो करशे जि नराज हो ॥ ० ॥ ४ ॥ मत मुने तुं शीलो जाणे, धूरथकी हूं क्रूर हो ॥ अनि जाल उपरथी बाले, मूल हो जलपूर हो ॥ रा० ॥ ५ ॥ हुं हिम नी परें वाढो गाढो, तुम दल वृद्ध अपार हो ॥ कांखर कीधा पल नरमाहे, हवे तहारी बे वार हो ॥ रा० ॥ ६ ॥ हय गय सेवक सघला नावा, खोइश