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________________ ६७ जैनकथा रत्नकोप नाग पहेलो. एम कहेतां कहेता केवलज्ञान पाम्या. तेनो देवतायें महोत्सव कयो. चो राशी साख पूर्वनुं श्रायु जोगवी मोदें गया. तेमनो पुत्र श्रीसूर्ययश थयो, तेणे पण नरतेश्वरनी पेलेंज श्रीसंघनी नक्ति करी. उर्वशी प्रमुख देवांगनायें परीक्षा कीधी पण चलायमान थयो नंही. तेमने पण आरीसामां रूप जोतां केवलज्ञान उपन्युं अर्ने मोदे गयो.' तेमनो पुत्र महायश, ते मनो पुत्र अतिबल, तेमनों पुत्र बलन, तेमनो पुत्र, बलवीर्य, तेमनो पुत्र कृतवीर्य, तेमनो पुत्र जलवीर्य, तेमनो पुत्र आतमे पाटें दमवीर्य. ए सर्वत्र ण खंमना नोक्ता थया, चतुर्विध श्रीसंघनी नक्तिना करनार थया. इहां न रतनी पाउल न कोडी पूर्व वर्ष गयां, तेवारें सौधर्म अवधिज्ञानने प्रमाणे स्तवना करी पोतें अयोध्यामांहे आवी झानादिक गुण जणाववा माटें य झोपवित धारी बार व्रतनां बार तिलक कस्यां. ते अवसरें दमवीर्य सजायें इंइने श्रावकरूपें दीठो, ते देखीने हर्षवंत थयो. पड़ी जमवानी निमंत्रणा कीधी, रसोश्याने कर्वा के साधर्मिकने रूडी रीतें जोजन करावों. इंश पल श्रावकरूप धरतो घरमांहे आव्यो, पचरकाण पारी श्रावकोनी, पंक्तिमां ज मवा बेतो. एक कोड. श्रावकने अर्थे जेटनुं अन्न निपजाव्यु हवं तेटलुं ते एकलो जम्यो. वली रसोश्याने कह्यु के हुँ नुख्यो , माटे अन्न आप. र सोश्यायें राजानी यांगत सर्व वौत कही. राजा तिहां व्यो, तेने श्राव करूपधारक इंई कह्यु के ए रसोइ करनार सर्वने नरख्या राखे . राजायें वली सो मूडा अन्न रंधावी पीरइयुं, ते तत्काल जमीने वाली कहेवा लाग्यो के महारी नूख गइ नथी. एरीतें राजानुं अपमान करवा लाग्यो के हुँ तृप्तथा तो नथी.तेवारें राजायें मनमां खेद कस्योजे महाराथीसंघनी पूर्ण नक्ति थाती नथी, माटें मुने धिक्कार . सेवक बोल्यां महाराज! ए कोई देवस्वरूपीछे, तेवारें राजायें धूपादिकें संतोषी नमस्कार करी पूयुं के हे स्वामी ! प्रसन्न था.साधर्मीनी नक्ति महाराथी केम थशके ? एवं सांजली इंपोतार्नु प्रगट रूप कीg. दमवीर्यनी प्रशंसा करवा लाग्यो ने कह्यु के हे दमवीर्य ! ते युगादि देवनो वंश उजाल्यो, धन्य बे तुमने जे तुं आवी रीतें साधर्मीनी नक्ति करे जे. नक्तं च ॥ ते पुत्राये पितुर्नता, स पिता यस्तु पोषकः ॥ तन्मित्रं यत्र विश्वासः, सा नार्या यत्र निर्वृतिः ॥१॥ इत्यादि स्तवना करी इंश देवलोकें गयो. दंमवीर्य पण संघनक्ति करी जन्म सफल करी मोद पहोतो. एम
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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