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सिंदूरप्रकरः
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युं के केम कुमारजी धर्मनां फल दीठां के ! ांधला तो थया !!! एम कही न गारेक तिहां बेसी पती कुमरने मूकी घोडे चडीने सन अन्यदेशें जतो रह्यो. हवे पालथी कुमर चिंतववा लाग्यो के श्रापदारूप नदीनों पूर, पूर्व कृतकर्मप्रमाणें महारे वृद्धि पाम्यों के यवा वली आपदा ते गुं? धर्मना प्रसादथी सर्व सारूंज, याशे: एम चिंतवी ज्ञानबलें धर्म उपर निश्चल मन करी जो रह्यो . एवामां सूर्य अस्त पाम्यो. चारे दिशायें अंधकार पस्यो, रात्रिचरं जीवो संचार करवा लाम्या, चोर 'पेसया, एवा अवसरें तिहां वड उपर नारंग पंखी मली मांदोमांहे वातो करवा लाग्या के जेणें जे कौतुक दी होय ते कहो. तेवारें एक बोल्यो के इहांथ । पूर्व दिशें चंपा नगरें जितशत्रु राजा राज्य करे बे, तेने पुष्पवती नामा पुत्री प्राणथी पण व न ब्रे, ते महारूपसौंदर्यनुं निधान बे, यौवनावस्था पामी पण कृतक ने योगें तेने अंधपणुं प्राप्त ययुं से. एकदा प्रस्तावें राजा पोतानी पुत्रीने खोलामा बेसाडी चिंतववा लाग्यो के एक तो दीकरी बे ते स्वनावें चिंता नुंज कार ने वली • एतो कर्मै कलंकित बे ने विवाहयोग्य पण as a. हवे श्यो उपाय करवो ? एम विचारी नगरमां पडद वजडाव्यो जे राजानी दीकरीनी यांखा सारी करे, तेने राजा अर्धु राज्य तथा तेहीज कन्या पे. एवी रीतें राजपुरुष तिहां चछूटे चहुटे ढंढेरो फेरवे बे ए कौतुक में दीतुं दवे श्रागत गुं थाशे ? ते ढुं जाणतो नथी.
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एवं सांजली वली एक न्हानो नारंग बोल्यो के हे तात! तमें जाता हो तो कहो, के नेत्र सारां थवानों कोई उपाय बे. ते सांजली वृद्ध नारंग बोल्यो के हे वत्स ! उपाय तो घणाय बे, पण, नाग्य विना मजे नही. "तेवारें लघुजारंग बोल्यो के तमें जाणता हो तो कहो. तेवारें वृद्ध नारंग के हे वत्स ! रात्रियें कहेवाय नहीं ॥ यतः ॥ दिवा निरीक्ष्य वक्तव्यं, रात्रौ नैवच नैवच ॥ संचरंति महाधूर्त्ता, वटे वररुचिर्यथा ॥ १ ॥ वलील घुनारंग बोल्यो के इहां तो कोइ सांजलतो नथी मानें तमें कहो. तेवारें वृद्ध बोल्यो जे ए वृदने जे वेलडी वींदार रही बे, तेने लइने जो यांखे अंजन करे, तो नवां नेत्र खावे, ते सांगली वली लघुनारंग बोल्यो के स्वामी ! तमें प्रातें किहां जाशों ? ते बोल्यो के तेंहीज नगरें हुं जश लघुभारंभ बोल्यो के हुं पण कौतुक जोवाने माटे तमारी साथै श्रावीश.