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________________ २०G जैनकथा रत्नकोष नाग पहेलो. ॥ सुखे कुःखे नवे मोदे, यदौदासीन्यमीशिपे ॥ तदा वैराग्यमेवेति, कु त्र नासि विरागवान् ॥ ६॥ नावार्थः-हे माथं ! तमें जे समयें सुख, उःख नव बने मोक्ने विपे औदासीन्य धारण करो बो,ते समय पण तमने वैरा ग्यज रहे .ए माटेंतमें कया कालें कया स्थलें वैराग्यवान् नथी? अर्थात् सर्व कालें सर्वस्थलें वैराग्यवानज बो ॥ ६ ॥ ॥ दुःखगर्ने मोहगर्ने,वैराग्ये निष्ठिताः परे॥झानगर्न तु वैराग्यं त्वय्यैवा कात्मतां गतम् ॥ ७ ॥ नावार्थ:-हे नाथ ! अन्य एवा संसारी जीव, खगड़ित वैराग्यने विषे अने मोहगर्नित वैराग्यने विषे निष्ठा प्रत्ये पामेला बे, अने तमारे विषे झानगर्नित एवो वैराग्य एकाश्रयताने पामेलो . अ र्थात् तमारा जेवो वैराग्य कोश्ने नथी ॥ ७ ॥ ॥ योदासीन्येपि सततं, विश्वविश्वोपकारिणे ॥ नमोवैराग्यनिघ्नाय, ता यिने परमात्मने ॥ ७ ॥ नावार्थः-ए माटें निरंतर उदासीनत्वं बते प ए संपूर्ण जगत् नपर नपकार करनारा, वैराग्यतत्पर अने सर्व प्राणिमात्रनुं रहाण करनारा एवा परमात्मा जे तमें ते तमने महारो नमस्कार हो॥७॥ इति वैराग्यस्तवनामा हादशः प्रकाशः ॥१२॥ ॥ अथ. हेतुनिरासनामा त्रयोदश प्रकाशः॥ . ॥ अनादूतसहायस्त्वं; त्वमकारणवत्सलः ॥ अनन्यर्थितसाधुस्त्वं, त्व मसंबंधबांधवः ॥ १॥ नावार्थ:-हे नाथ! तमें न. बोलाव्या बता पण सखा प्रमाणे आचरण करनारा, अने कारण विना हितकर्ता, अने प्रार्थना न कस्या बता पण परकार्य साधन करनारा बो. अने संबंधविनाना बांधव गे॥ ॥ अनक्तस्निग्धमनस,ममृजोज्ज्वलवाक्पथम् ॥ अधौतामलशीलं त्वां, श रण्यं शरणं श्रये ॥ २॥ नावार्थः-एमाटें अन्यंग विनाज जेनुं मन स्ने हयुक्त ने, अने मलापकर्षण विना जेनो वचनमार्गनिर्मल , अने प्रदालन कस्या विनाज जेनो स्वनाव निर्मल , एवा शरण जवा योग्य जे तमें, ते.तमारा शरणनो हुँ आश्रय करूं बुं ॥ २ ॥ ॥ अचमवीरव्रतिना, शमिना समवर्तिना ॥ त्वया काममकुठ्यंत, कुटि लाः कर्मकंटकाः ॥ ३ ॥ नावार्थ:-हे नाथ ! शांत बता पण सुनटव्रत वाला अने (शमिनासमवर्तिना के ) शमशील अने शत्रुमित्रादिकोने
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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