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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
सूर्य के प्रथम गली में रहने पर
ताप-तम का प्रमाण
जव मूर्य अभ्यन्तर गली में रहता है उस समय लवण समुद्र के छठे भाग में ताप की परिधि १५८११४६ योजन (६३२४५६२०० मील) है । एवं तम को परिधि का प्रमाण १०५४०६५ योजन (४२१६३६८०० मोल) है। तथा वाह्य गली में ताप की परिधि ६५४६४, योजन है और तम की परिधि ६३६६२३ योजन प्रमाण है।
उसी प्रकार मध्यम गलो में नाप की परिधि ६५०१०३ योजन एवं नम की परिधि ६३३४० योजन है।
मेरू पर्वत की परिधि में ६४८६, योजन का प्रकाश और ६३२४१ योजन का अन्धेरा होता है।
सूर्य के मध्यम गली में रहने पर
ताप-तम का प्रमाण
जब सूर्य मध्यम गली' में गमन करता है उस समय ताप और तम की परिधि समान होती है । अर्थात्
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१. तिलोयपण्णत्ति शास्त्र में प्रत्येक गली में सूर्य के स्थित रहने पर ताप.
तम का प्रमाण निकाला है । (विशेष वहां देखिये)