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जैन ज्योतिर्लोक
उस समय लवण समुद्र के छठे भाग में ताप और तम को परिधि १३१७६१: योजन समान रहती है।
इसी समय बाह्य गलो में ताप एवं तम को परिधि ७६५७८३ योजन को समान होती है।
इसो समय अध्यंतर गलो में ताप तथा तम की परिधि ७८७७२: योजन को होती है ।
एवं मेरू को परिधि ताप तथा तम को ७६०५. योजन प्रमाण होती है।
सूर्य के अन्तिम गली में रहने पर
ताप-तम का प्रमाण मूर्य जब अन्तिम गली में गमन करता है उस समय लवण समुद्र के छठे भाग में ताप की परिधि १०५४०६, योजन की एवं तम को परिधि १५८ ११३, योजन की होती है।
उमी समय मध्यम गलो में ताप को परिधि ६३३४०३ योजन एवं नम की परिधि ६५०१० योजन की होती है।
उसो समय अभ्यन्तर गलो में ताप की परिधि ६३०१७३ योजन एवं नम की परिधि ६४५२६६. योजन की होती है। . ___ एवं उसी समय मेरू की परिधि में ताप ६३२४, योजन और तम ९४८६३ योजन प्रमाण होता है।