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वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला
प्रथम गली की परिधि का प्रमाण ३१५०८६ योजन है। उनमें ६० मुहूर्त का भाग देने से उपर्युक्त संख्या आती है क्योंकि २ सूर्यों के द्वारा ३० मुहूर्त में १ परिधि पूर्ण होती है। अतः १ परिधि के भ्रमण में कुल ६० मुहूर्त लगते हैं। अतएव ६० का भाग दिया जाता है।
उसी प्रकार जब सूर्य वाह्य गली में रहता है तब बाह्य परिधि में ६० का भाग देने से-३१८३१४ :-६० =५३०५२४ योजन (२१२२०६३३३ मील) प्रमाण १ मुहूर्त में गमन करता है।
एक मिनट में सूर्य का गमन एक मिनट में सूर्य की गति ४४७६२३३५ मील प्रमाण है। अर्थात् १ मुहूर्त की गति में ४८ मिनट का भाग देने से १ मिनट की गति का प्रमाण आता है । यथा २१२२०६३३३ : ४८= ४४७६२३१० योजन ?
अधिक दिन एवं मास का क्रम
जब सूर्य एक पथ से दूसरे पथ में प्रवेश करता है तब मध्य के अन्तराल २ योजन (८००० मील) को पार करते हुये ही जाता है । अतएव इस निमित्त से १ दिन में १ मुहूर्त की वृद्धि होने से १ मास में ३० मुहूर्त (१ अहोरात्र) की वृद्धि होती है। मर्थात् यदि १ पथ के लांघने में दिन का इकसठवां भाग (१७) उपलब्ध होता है। तो १८४ पथों के १८३ अन्तरालों को लांघने में कितना समय लगेगा-६४१८३: १=३ दिन तथा २ सूर्य संबंधि ६ दिन हुये।