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देखना चाहिए । उसके प्राचरणं यदि शुद्ध हो जाये तो उस उचित धर्माधिकार भी पालन करने दिए जायं। ऐसे पति लोगों की शुद्धाचरण सन्तानों को तो पूरी तरह से श्रावक वे पटावश्यक प्रादि का पालन करने देना चाहिए। ऐसा करने से जैनी विधर्मी नहीं होंगे और मन्दिरों में पूजा आदि को व्यवस्था भी उत्तम रहेगी। साथही इसके हमें अन्यलोगों में भी धर्मका प्रचार करना चाहिए। उनके लाभ के लिए पाठशा लाएं, औषधालय आदि खोलना चाहिये जिस से उनकी विश्वास हो कि जैनी हमारी भलाई करना चाहते हैं और जैन धर्म अच्छा है जो ऐसी शिक्षा देता है। तब उनको जैन धर्म जानने की इच्छा होगी और वे जैनी बनेंगे। फिर जिस जातिक वे मनुष्य हो उस जाति में वे सम्मिलित करलिए जावें । जैसे अजैन अग्रवाल अग्रवालों में, और जिनकी जाति को कोई न हौं उनकी अलग जाति वनजाय। ऐसे जैनियों को उचित रीति से पूजा श्रादि करने देना चाहिये। ___ इस प्रकार यदि ऊपर वताए हुए कारणों को हटाकर बताए हुए उपायों को कार्यरूप में परिवर्तित किया जाय तो जैन जाति की उन्नति होने लगे और जैनधर्म का प्रकाश चहुँ, ओर फैलजावे । तथैवं उसका हास होना रुक जावे । इन कारणों और उपायों का ज्ञान सर्वसाधारण को कराने की आवश्यक्ता है । अतएव आशा है,कि समाज के नवयुवक इस कार्य के करने के लिए मैदान में आवंगे और जाति के ग. मान्य संजन उनकी पूरी सहायता करेंगे।