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*जैन जगतो PRA
अरिहंत का स्वागत
सम्राट आगे हाथ जोड़े पाँव नने चल रहे; चतुरंगिणी सज कर चमू सामंत पीछे आ रहे । वाद्यंत्र के निर्घोष से हैं व्योम पूरित हो रहा; जिन स्वागतोत्सव देव-तरुवर के तले है हो रहा ॥ २६६ ॥ त्रयगढ़ ३०१ मनोहर की यहाँ हैं देव रचना कर रहे; अरिहंत का सुर मणिजटित आसन यहाँ लगवा रहे । प्रदेशना देने लगे विभु मन्च पर अब बैठ कर ; तिर्यंच तक रस ले रहे हैं मातृ-जिह्वा श्रवण कर || ३०० ॥ भोजन वेला
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* श्रतीत खण्ड
अब देवियाँ अपने गृहों में पाक-व्यञ्जन कर रहीं; आकर प्रतीक्षा द्वार पर कुछ साधु मुनि की कर रहीं । यदि गया मुनि ब्रह्मचारी भाग्य उनके जग गये; सबको खिला कर खा रहीं, भोजन नवागत कर गये || ३०१ ॥
हाटमाला
देखो लगी यह हाटमाला स्वर्ण-सुन्दर लग रही; भूषण उधर को, वस्त्र की इस ओर विक्री हो रही । ग्राहक जुड़े हैं हाट पर बिन भाव पूछे ले रहे; सुर शाह जी के सत्य की देखो परीक्षा ले रहे ।। ३०२ ।।
राज-प्रासाद
ये चक्र -पाणी भूप के प्रासाद हैं तुम पेख लो; श्रमात्यवर से कर रहे नृप मंत्रणा तुम लेख लो | साम्राज्य में मेरे कहीं भी चोर, लम्पट हैं नहीं; हो देश जिससे स्वर्गसम, करना मुझे मंत्री ! वही ॥ ३०३ ॥
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