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* जैन जगती
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* अतीत खण्ड
उस समय के स्त्री-पुरुष
नर देव हैं, हैं नारियाँ मृतवर्ग में सुर-देवियाँ, नर- ज्ञान गरिमागार हैं, हैं नारियाँ गुण-राशियाँ । उपकार - प्रारणा पुरुष हैं, सेवापरायण नारियाँ; सर्वत्र आनन्द क्षेम हैं, बस खिल रहीं फुलवारियाँ ।। २७६ ।।
बाहर प्रमुख नर- देव हैं, भीतर प्रधाना नारियाँ; हैं कर रहीं कैसी व्यवस्था लेख लो सुकुमारियाँ | उनमें कलह, शैथिल्य, आलस नाम को भी हैं नहीं; जो भी मिलेंगे गुण मिलेंगे, दोप मिलने के नहीं ॥ २८० ॥ उद्योग में, राजत्व मेंसंसार के हर तत्त्व में । सब ज्ञान के भण्डार हैं; सौजन्य के आगार हैं ।। २८१ ॥
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व्यापार में, व्यवसाय में, नरनारि दोनों हैं कुशल बल - बुद्धि- प्रतिभापुञ्ज हैं, विज्ञान के, कौशल्य के,
हैं नारियें या देवियें या कल-कला प्रत्यक्ष हैं; सीना पिरोना जानती हैं, कार्य-कुशला दक्ष हैं । पति धर्म है पति मर्म है, पति एक उनका कर्म है; वे स्फूर्ति की प्रतिमूर्ति हैं, उनके नयन में शर्म है ॥ २८२ ।।
ये देख लो वे सज रही हैं साज निज रण के लिये; रुक जाय नर-संहार यह, वे जा रहीं इसके लिये । दुख है न कोई चीज उनको, ऐश क्या ? आराम क्या ? अवशिष्ट रहते कार्य के उनको भला विश्राम क्या ? ॥ २८३ ॥
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