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* अतीत खण्ड
*जैन जगती
सन्तान
सन्तान सब गुणवान हैं, बलवान हैं, धीमान हैं; माता पिता में भक्ति है, सब के प्रति सम्मान है I माता पिता का पुत्र से, अतिशय सुता से प्रेम है; संतान के कल्याण में, माता-पिता का क्षेम है ॥ २८४ ॥
जब देव सदृश हो पिता, देवी स्वरूपा मातृ हो; सन्तान उत्तम क्यों न हों, ऐसे सगुण जब पितृ हों । पति पत्नि के गुणपुञ्ज का सन्तान होती 'योग है; ये गु- गूण राशियों का गुणनफल है, योग हैं ॥ २८५ ॥
दाम्पत्य-जीवन
सन्तान आज्ञापालिनी है, नारि आज्ञाकारिणी; सब कार्य - प्राणभृत्य है, समृद्धि है अनुसारिणी । दाम्पत्य जीवन क्यों न हो फिर सौख्यकर उनका सदा; निर्मल सरोवर पद्मयुत लगता न सुन्दर क्या सदा ? ||२८६|| कर्तव्याचरण
हो कूकड़ २९६
का कूक इसके पूर्व ही सब जग गये; जिनराज का करके स्मरण सब प्रति-क्रमण में लग गये । आलोचना, पचखाण कर गुरुदेव-वंदन हो गये; यो धर्म- कृत्यों से निपट गृह-कार्यरत सब हो गये ॥ २८७ ॥ स्वाध्याय २९७ १, पूजन, दान, संयम, तप तथा गुर्वर्चना; कर्तव्य हैं ये नित्य के अरु हैं अतिध्यभ्यर्थना । ये देख कर बाधा विविध रुकते न चलती राह हैं; तन-प्रारण की, धन-ऐश की करते न ये परवाह हैं ॥ २८८ ॥
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