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जैन जगती SCORREEncy
* अतीत खण्ड ७
यह मत अहिंसावाद का शिव-शान्ति का संदेश है; हर ग्रन्थ को तुम देख लो, उसमें यही आदेश है। हम कह चुके थे ये कभी से पूर्व लाखों वर्ष ही; है कर रहा उपदेश फिर भी आज भारतवर्ष ही ॥ १६६ ॥
अंग १७१ साहित्य कितना उच्च है ? तुम अंग पढ़कर लेख लो। आचार का, व्यवहार का सब मर्म उनमें पेख लो। व्रत, सत्य, संयम, शील का उपदश इनमें है भरा; अवलोकते ही कह पड़ोगे-क्या विवेचन है करा ! ॥ १७० ।। तुम ग्रन्थ आचारांग-से कुछ ढूँढ़ कर तो दो बता; सूत्रोत्तराध्ययन तुमको हम बाद में देंगे वता। अनुयोग, नंदीसूत्र का हरि-द्वार तुमको खोल दें; ये मुक्ति-माणिक-रत्न-भृत हैं--आपको अनमोल दें। १७१ ।। ___उपांग १७२ सद्भाव कहते हैं किहें, क्या रूप उनका सत्य है ? तप, दान, ब्रह्माचार क्या है ? क्या अहिंसा कृत्य है ? अपवर्ग, ग्रह, नक्षत्र का यदि विशद वर्णन चाहिए । तब द्वादशोपांग तुमको आद्यन्त पढ़ने चाहिए ।। १७२ ।। पयन्ना १७३ ये दश पयन्ना ग्रन्थ तुमने आज तक देखे नहीं! जिनराज, त्यागी, सिद्ध के क्या रूप हैं-पेखे नहीं ! स्याद्वाद कहते हैं किसे? क्या मोक्ष का सद्प है ?ये मोक्ष-जिनपद मर्म के साहित्य-दर्पण रूप हैं ।। १७३ ।।