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जैन जगती. Peacot Recen
ॐ अतीत खण्ड 8
छेद-सूत्र १७१ काठिण्य साध्वाचार का छः छेद-सूत्रों में पढ़ो; इनमें कथित आचार को तुम पाल जिनपद पर चढ़ो। जब अग-चालन सूक्ष्म भी सावध है माना गया; तब पार्थमय व्यवहार पर कितना लिखा होगा गया ? ॥ १७४ ॥ संसार के सब साधुओं का एक सम्मेलन करो; फिर त्याग किसका है अधिक-निष्पक्ष हो चर्चा करो। इन छेद-सत्रों से इनर हर ग्रन्थ की तुलना करें; सिद्धान्त जिनका श्रेष्ठ हो, सब जन उसे स्वीकृत करें ॥१७५ ।।
चार मूल व दो चूलिका सूत्र १७५ चत्वार सूत्रों में हमारे तत्त्व सारे आगये: जीवन-मरण के भेद वर्णित चूलिका में हो गये। बस सत्र अङ्गोपाङ्ग में कर्त्तव्य वर्णन आ गया; इनमें विवेचन पूर्ण साङ्गोपाङ्ग जग का हो गया ॥ १७६ ॥
धर्म-ग्रन्थइस ग्रंथ गोमठमार१७ के सम ग्रंथ दूजा है नहीं; अतिरिक्त इसके मोक्ष-पद का वम दूजा है नहीं। श्रुति वेद, गीता ग्रंथ के सब सार इसमें आ गये; सम्पूर्ण मानव-धर्म के सिद्धान्त इसमें भर गये ॥ १७७॥ नवतत्व१७ दृश्यादृश्य जग का एक सत्तम ग्रन्थ है; इस ग्रंथ में नव तत्त्व जग के कह गये निग्रंथ हैं। यदि सूत्र तत्त्वार्थाधिगम ७८ तुमने न देखा हो कभी; तुम मनुज नहिं, खर-मूर्ख हो विद्वान होकर भी अभी ।। १७ ।।