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अतीत खएड .
पाखण्ड, मिध्या, पाप का उस काल में नहिं अंश था; पापी, नराधम मनुज का उन्मूल ही तब वंश था। नरभूप गर्दभने ५ जहाँ दुष्भाव आर्या पर किया; मुनिकालिकाचार्याय ने कैसा वहाँ था प्रण किया ।। ७६ ॥ जिस काल इन्द्राचार्य ,तिलकाचार्य द्रोणाचार्य थे, श्रोमल्लवाद्याचार्य, सूराचार्य, वीराचार्य २ थे; मुनिवर जिनेश्वर 3 जीव देवाचार्य७४ दुर्गाचार्य५ थे; उस काल भारत आर्य था, इसके निवासी आर्य थे॥२०॥ श्रीमानतुगाचार्य ने पद-बंध चौमालीस सेखण्डित किये पद-बंध, पाया मान मनुजाधीश से । गुरु थे सुहस्ती७७ आर्य को सम्राट संप्रति ८ मानते; आदर्श का आदर्श ही सम्मान करना जानते ॥१॥
श्री मानदेवाचार्य७९ के, श्री अभयदेवाचार्य के, वेताल वादी शान्ति'' मुनि के, खप्पभट्टाचार्य-२ के, वर्णन गुणार्णव का करूं कैसे भला मैं वर्ण में ! पर भान पा सकते नहीं आदित्य का क्या किरण में ? ।।२।। जिनदत ३,कुशलाचार्य-४,जिनप्रभ५ युग-प्रभावक हो गये; श्री चन्द्रसूरीश्वर प्रभाचन्द्रार्य मुनिमणि हो गये। पंडित शिरोमणि आर्य आशाधर अमितगति आर्य-सेविश्रुत जगत में होगये साहित्य-सेवा कार्य से ।। ८३ ॥
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