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मालगङ्गाधर तिलक ने ३० नवम्बर सम् १८६४ को बड़ीषा में व्या. ख्यान देते हुए कहा था। जैन जाति महोदय प्र० प्रकरण से उद्धृत ।
१२४-पौष शुक्ला १ स. १६६२ को काशी में व्याख्यान देते हुये पं० स्वामोराममिश्रजी शास्त्रो, भूतपूर्व प्रोफेसर सं० कालेज बनारस ने कहा, "मुझे तो इसमें किसी प्रकार का उज नहीं है कि जैनदर्शन वेदान्तादि दर्शनों से भी पूर्व का है।" जै. जा० महोदय प्र० प्रकरण ।
१२५-५० बालगंगाधर तिलक का भी यही मत था कि जैन-धर्म अनादि है । जै० जा० महोदय प्र० प्रकरण ।
१२६-(अ)-"ऋषभ देव जैनधर्म के संस्थापक थे यह सिद्धान्त अपनी भागवत से भी सिद्ध होता है।.........महावीर जैनधर्म के संस्थापक नहीं हैं। बे २४ तीर्थंकरों में से एक प्रचारक थे।" ये वाक्य गोविन्द आप्टे बी० ए० इन्दोर निवासी ने अपने एक व्याख्यान में कहे थे।
(ब) - "लोगों का भ्रम-पूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे। किन्तु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेव ने किया था। इसको पुष्टि के प्रमाणों का अभाव नहीं है।" ये वाक्य श्री० वरदान्त मुख्योपाध्याय एम० ए० ने अपने बंगला लेख में लिखे थे, जिसका हिन्दी-अनुवाद नाथूराम प्रेमी ने किया है। जै० जा० महोदय प्र० प्रकरण ।
१२५-"सबसे पहिले इस भारतवर्ष में "ऋषभदेवजो" नाम के महर्षि उत्पन हुए ......इनके पश्चात् अजितनाथ से
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