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'सत्य' और 'अहिंसा' में ही किये हैं और समस्त संसार को भी आपका यही उपदेश है। संसार भले प्रकार जानता है कि जैन धर्म के भी मुख्य सिद्धान्त सत्य और अहिंसा ही हैं । ___ १२१-'यह निर्विवाद सिद्ध है कि बौद्धधर्म के प्रवर्तक गोतमबुद्ध से पहिले जैनियों के तेवीस तीर्थकर हो चुके हैं।' यह प्रसिद्ध विद्वान् डेविड साहब ने एनसाइक्लोपीडिया ब्याहाल्यूम २६ में लिखा है। ऐसा ही अनेक यूरोपीय विद्वानों का मत है। अब तो हमारे देशभाई भी ऐसा मानने लगे हैं ।
१२२-देखो 'जैन जातिमहोदय' प्रथम प्रकरण (मुनि ज्ञानसुन्दरजी विलिखित)
(अ) यजुर्वेद-ॐनमोऽहंन्तो ऋषभो । (ब) यजुर्वेद-ॐ रक्ष रक्ष अरिष्टनेमि स्वाहा ।
(अध्याय २६) (स) श्री ब्रह्माण्डपुराण
नाभिस्तु जनयेत्पुत्रं. मरुदेव्यां मनोहरम् ।
ऋषभं क्षत्रियश्रेष्ठ. सर्वक्षत्रस्यपूर्वकम् ।। (द) मनुस्मृति-कुलादि बीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहन।
चक्षुष्मांश्च यशस्वी वाभिचन्द्रोथ प्रसनेजित ॥ (इ)-महाभारत में श्रीकृष्ण भगवान् क्या कहते हैं'आरोहस्व रथे पार्थ गांडीवंच कदे गुरु । निर्जिता मेदिनी मन्ये निग्रन्था यादि सन्मुखे ।' १२३..... परन्तु इस घोर हिंसा का ब्राह्मण धर्म से विदाई ले जाने का श्रेय जैनधर्म ही के हिस्से में है।' उक्त साथ पं.
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