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9 भविष्यत् खण्ड.
शुभ कामना हो दग्ध सारे शूल, निःजड़ हो हमारी जाड्यता; हो भस्म यह विषया-लता, उन्मूल हो आलस्यता। यह फूट कुत्सा हो रसागत, द्वष, मत्सर नष्ट हो; सम्फुल्ल हो शुचि प्रेम-तरु, भ्रातृत्व हम में पुष्ट हो ॥२०॥ स्वाधीन भारतवर्ष हो, स्वातन्त्र्ययुत हो जातियें; सर्वत्र सुख-साम्राज्य हो, हो नष्ट अवमा व्याधियें । तन में मनुज के स्फूर्ति हो, नस में प्रवाहित रक्त हो; मस्तिष्क ध्याकर हो सभी के, ईश के सब भक्त हो ।।२०१।। सब में परस्पर प्रेम हो, मत के न पीछे द्वष हो; सौहार्द सब में हो भरा, रसभृत हमारा देश हो । प्रत्येक जन भागार हो विज्ञान, विद्या, ज्ञान का; हो भक्त वह निज राष्ट्र का, हो भक्त हिन्दुस्तान का ॥२०२।। सब हो महाशय, हृष्ट मानस, हो प्रसित अत्युद्यमी; कौशल-कला-निष्णात हो,हो विज्ञ, शिक्षित सब क्षमी । अभिजात हो, प्रतीक्ष्य हो हम, हो सभी कृतलक्षण; सब हों प्रियंवद, वाक्कुशल, चित में न हो अमर्षणा ॥२०॥ वाचाल, दुर्मुख हों नहीं, हम गर्यवादिन हों नहीं; दुष्कर्म से हो दुर्मनस, लोभी कुचर हम हों नहीं। सर्वान्न भोजिन भी न हों, अरु हो न परपिण्डाद भी; कोई न हम में हो बुभुक्षित, हों न हम सोन्माद भी ॥२०॥
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