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जैन जगती
भविष्यत् खण्ड ®
पत्रकार अपवाद, कुत्सा, भूठ-लेखन से तुम्हें वैराग्य हो; बिगड़ी बनाने का तुम्ह उपलब्ध अब सौभाग्य हो। हमको जगाने के लिये तुम युक्तियों से काम लो; सोये हुओं को मृत बना दे जो, न उसका नाम लो ॥१३॥ हे पत्रकारो ! पत्र में सुन्दर सुधाकर लेख दो; मन देखते ही खिल उठे, पंकिल न तुम अब लेख दो। यदि व्यक्तिगत-अपवाद भी तुमको कहीं करना पड़े। ऐसा लिखो बस युक्तिगत वृथा न श्रम करना पड़े ॥१३६।। उठते हुए कवि, लेखकों को कर पकड़ उत्थित करो; है पत्रकारों की कमी, सो इस तरह समुचित करो। फिर से नया मण्डन करो इस जाति मागार का; जड़, मूल उच्छेदन करो बढ़ते हुए अतिचार का ॥१३७॥ अब राग, मत्सर, द्वेष के विष-झर बहाना छोड़ दो, इस ओर से उस ओर को अब गति बढ़ाना तोड़ दो। हर पत्र हो नर मात्र का, हो साम्प्रदायिक वह भले; बस साम्प्रदायिक गंध से नहिं पत्र प्लावित वह मिले ॥१३८॥
शिक्षण संस्थाओं के संचालक संचालको ! विद्याभवन सब आपके श्रादर्श हों; सर्वत्र विध्याभ्यास का अतिशय बढ़ा उत्कर्ष हो। शिक्षक सभी गुणवान हो, सब छात्र प्रतिभाशील हो; वातावरण चटशाल का सुन्दर शिवं सुखशील हो ॥१३॥
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