________________
® जैन जगती NBCCORRENGE
8 भविष्यत् लण्ड
विद्याभवन में नाम को नहिं साम्प्रदायिक भाव हो; ऐसे न शिक्षण हों वहाँ जिनसे सबल पर दाँव हो। सौजन्यता का ऐक्यता का प्रेमपूर्वक पाठ हो; विनयादि सत्तम शुभ गुणों का पाठगृह वह हाट हो ॥१४०॥ गुरुकुल व्यवस्थित हों सभी, चालक सभी गुणवान हो; जातीय झगड़े हों नहीं, निर्भेद विद्यादान हो। संचालको ! ये छात्रगण सब जाति की सम्पत्ति हैं; इनको अगर कुछ हो गया सब ओर से आपत्ति है ।।१४१।। सबकी लगी है दृष्टि इन सब गुरुकुलों के ओर ही; एकत्र भी तो हो रहा धन जाति का इस ओर ही। संचालको! ह शिक्षको ! कितना बड़ा यह कोष है ? फिर भी तुम्हें सब सौंप कर वे कर रहे संतोप हैं ।।१४२१॥
- नारी नारी कला अब हाय ! रं ! विप्रह, कलह में रह गई ! मरते हुए हम मर्त्य पर भरकम शिला-सी गिर गई। जब लड़ रही हों ये नहीं, जाता निमिष ईश नहीं; इस दृष्टि से बहनो ! तुम्हारे नाम है अनुचित नहीं ॥१४३।। बहनो! तुम्हारे पतन में अपराध है सब पुरुष का;ऐसा नहीं तुम कह सको; कुछ आपका, कुछ पुरुष का । तुमको नचाते हैं पुरुष-उनका यही व्यभिचार है; संफुल्ल होकर नाचतो हो तुम, यही रसचार है ॥१४४॥
१५५