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जैन जगतो POORRENost
अतीत खण्ड
फैले हुये अघचार के ये दुष्ट जिम्मेदार हैं। ये हैं शिकारी जाति के इनके बुरे व्यापार हैं। आज्ञानुवर्ती आदि से हम आज तक इनके रहे। कहना पड़ेगा आज जब आदर्शता तज ये रहे ।। ४५ ॥
श्रीमन्त श्रीमन्त हो फिर क्या कमी-पैसा न क्या रे! कर सके; तुम जीव-हिंसा भी करो, पर कौन तुमको कह सके । कुछ एक को तो आप में भी है प्रिया मृगया-प्रिया; कुल्टा तुम्हारी हो गई चिरसंगिनी जोवन-प्रिया !! ॥ ४५ ॥ श्रीमन्त हो, रसराज हो, कामी तथा बेभान हो; अवकाश भी तुमको कहाँ ! जो जाति का भी ध्यान हो। इस आज को हा ! दुर्दशा के मूल कारण हो तुम्हीं; तुम रोग हो, गुग्ण चोर हो, अरु प्राण-हर्ता हो तुम्हीं !!॥ ४७ ॥ देव-धन खाते हुये तुमको न आती लाज है; तुम मनुज को भी खा सको यह कौन-सा दुष्काज है ! अनैच्छिक कन्या-हरण तुम हा ! कर्म गुण्डों का कहो; धन के सहारे तुम हरो, हो तुम न गुण्डे हा ! अहो !॥४८॥ फैले हुये अघचार के हा! तात, जननी हो तुम्ही; अनमेल वैद्धिक प्रणय के भी हाय ! त्राता हो तुम्हीं। बहु पाणि-पीड़न भी तुम्हारा हाय ! पापी कर्म है ये रो रहीं विधवा हजारों, पर न तुमको शर्म है !! ॥४६॥