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जैन जगती अतीत खण्ड ये जाति के अभिशाप हैं, निर्मल उसको कर रहे; संतान भावी को हमारी दीन दुखिया कर रहे। यदि हाल जो ऐसा रहा-हम एक दिन मिट जायँगे; इन पापियों के पाप का फल हाय ! कटु हम खायँगे ।। ४०।। है रोग इतना ही नहीं, दूजे कई हैं लग रहे; अनमेल वय में, वृद्ध वय में पाणि-पीड़न बढ़ रहे ! बहु पाणि-पीड़न की प्रथा भी आज हममें दीखती ! हम क्या कहें, अंतिम समय की काल-घड़ियाँ चोखती !! ॥ ४१ ॥ ये बाल विधवायें हजारों दे रही कटु शाप हैं; बालक विधुर हो फिर रहे-हम देखते नित आप हैं ! वृद्धायु के दुष्प्रणय ने हा! बल हमारा हर लिया; हा ! युवक दल के सत्व को कामी कुकुर ने हर लिया !!॥४२॥
जिस जाति का यह हाल हो, उसका भला सभव नहीं; कब किस घड़ी आ जाय उसकाकाल कुछ, अवगत नहीं। मेरे युवक ! तुम आँख खोलो, ध्यान कुछ तो अब करो; सरकार बल या युक्ति से इन कुक्कुरों को वश करो ।। ४३॥
सम्बन्ध जो अनमेल वय में, अल्प वय में कर रह; वृद्धायु में बहु पाणि-पीड़न जो मनुज हैं कर रहे; वे मातृ हो या पित हो या हो प्रबल बलधर भले; प्रतिकार तुम इनका करो-ये नाश करने पर तुले ॥४४॥