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जैन जगती PostIACES
प्रतीत खण्ड
परिधान करने के लिये मलमल विदेशी चाहिए ! हा! चमक लाने के लिये मुँह पर-लवण्डर चाहिए ! हर वक्त मुंह को पूछने करचीफ कर में चाहिए ! जलता हुआ सिगरेट तो कर में सदा ही चाहिए !! ॥ ३५ ॥ जेबी घड़ी है जेब में, है रिष्ट बाहे हाथ में; है नाक पर ऐनक लगी, है कैप दाहे हाथ में । ये छोर धोती का उठाये है किधर को जा रहे; हा ! हंत ! ये भी वैश्य हैं-वैश्या भवन को जा रहे !! ॥ ३६॥ हो पान की लाली टपकती, इत्र-भीना कान हो; हों वस्त्र सारे मलमली, रसराज की-सी शान हो। दो यार मिलकर साथ में ये झूमते हैं जा रहे; उन्मत्त होकर बहिन के कर को दबाते जा रहे !! ॥ ३७॥ इस हाय ! फैशन ने हमारा नष्ट जीवनः कर दिया; इसने हथोड़े मार कर हा ! हेम कण-कण कर दिया। इस भूत-फैशन के लिये हडुमान जगना चाहिए; या भूतसे ही भूत अब हमको भिड़ाना चाहिये ॥३८ ।।
अनुचित प्रणय बालायु में करना प्रणय संतान का-अभिशाप है; ऐसे-पिता माता नहीं, वे पुत्र के शिर पाप हैं। अल्पायु में ये कर प्रणय संतान निर्बल कर रहे; देकर निमंत्रण काल को ये भेट सन्तति कर रहे ! ।। ३ ।।