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वर्तमान खण्ड
गाती रही तू भूत अब तक लेखनी उत्साह भर; रोया न तुझसे जायगा अब आज का दिन दाहकर ! निःशक्त हैं, निःचेष्ट है, नहिं नाड़ियों में रक्त है; अब श्वास भी रुकने लगी, अंतिम हमारा वक्त है !!! ॥ १॥
क्या बंधुओ ! हमको कहाने का मनुज अधिकार है ? दर दर हमें दुत्कार है ! धिक् ! धिक् ! हमें धिक्कार है ! कटुकर लगेंगे आपको ये वाक्य हूँ जो कह रहा; पर क्या करूँ ? लाचार हूँ, मेरा हृदय नहीं रह रहा ॥२॥ दयनीय हा ! इस दुर्दशा का हे विभु ! कहीं छोर है ? इस ओर भी हम है नहीं, नहिं नाथ ! दूजी ओर है। हममें विषैली फूट है, हममें बढ़ा अघचार है; हैं रोग ऐसे बढ़ रहे, जिनका न कुछ उपचार है॥३॥ है अज्ञता-श्यामा-अमा सम्यक हमें घेरे हुये; हैं नाथ ! हम रतिकामिनी के कक्ष में सोये हुये । एकान्त हो, तमभार हो, रति रूपसी-सहवास हो; उस ठौर पर कल्याण की क्या नाथ! कोई प्राश हो॥४॥