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मही तत्वसें स्वपरहित रहा है. लोकापवादकाभी परिहार और शा. सनोन्नति इसी प्रकारसे हासिल की जाती है. स्वल्पमें निडरतासें, सच्ची हिम्मत पूर्वक न्याय मार्ग अंगीकार किये विगर जीवका कबीभी मुक्तता होतीही नहि. ऐसा समझकर याने जनको सर्वथा न्यायकाही शरण लेना उचित है. नाकमें दम आ जाने तकभी अनीतिको मार्ग स्वीकारना अयोग्य है. ___ ४२ वैभवके वस्त खुमारी नहि रखनी. .
पूर्व पुण्य योगसें संपत्ति प्राप्त हुई हो, तो संपत्तिके वस्त अहंकारी न होते नम्र होना सोही अधिक शोभारूप है. क्या आम्रादि क्ष भी फल प्राप्तिके वस्त विशेष नम्रता सेवन नहि करते है ? शक नम्र होते है ! वास्ते संपत्ति परत नम्र होनाही योग्य है. नही कि स्वच्छंदी बनकर मदमें खीचाकर तुंग मिज़ाजी होना. संप: तिके समय मदांध होना यह वडा विपत्तिकाही चिन्ह है !
- ४३ निर्धनताको वख्त खेदभी न करना. ___ पूर्वकृत कर्मानुसार प्राणी मात्रको सुख दुःख होवे तैसे सम विषम संयोग मिल जाय तो भी तैसे समयमा कर्मका स्वरूप सोचकर हर्ष-उन्माद या दीनता न करते समभावसेंही रहेकर यानासुज जनोने शुभ विचार वृत्ति पोषण कर समर्थ धर्मनीतिका प्रीति
से पा हिम्मतसें सेवन करना योग्य है, पहिले अशुभ कर्म करनेके - पस्त पाणी पीछे मुंहे फिराकर देखते नहि है, जिसके परिणामसे