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श्री जिनेश्वर प्रभुजीकी पवित्र आज्ञा पालनेके लिये पूरे तोरसे मेंयत्न करना योग्य है. इस तरह उत्तम लक्ष रखकर सुसाधु, साध्वी, श्रावक और श्राधिका यह सभी सुसंप समाधि करके श्री सर्वज्ञ शासन 'तर्फ अपनी अपनी तसे पवित्र फर्ज अदा करनेके लिये अनुकूल प्रयत्न सेवन करने में आये तो बेशक जगतहितकारी श्री जिनशासनका विशेष ज्योत-उत्कर्ष-प्रभावना हो सकेही हो सके; लेकिन अच्छी तोरसे लक्ष ही कौन देता है ? अभी अज्ञान पश अविवेक द्वारा भये हुवे कुसंपके सबसे उद्भव भइ मलीनता दूर करके सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्र सानुकूल पनि रखा जाय तो सम्यग् ज्ञान -विवेक प्रकाशसे सुसंप सुदृढ़ होके शासनकी. उन्नती क्यों न होने पावे ? वेशक हो! कहा है कि:
" कारण योगे हो कारज नीपजेरे, एमां कोई न वाद; पण कारण विण कारज साधियेरे, ए निजमत .दि.. संभव देवते धुर सेवो सवेरे, लही प्रभु सेवन भेद; सेवन कारण पहेली भूमिकारे, अभय अद्वेष अखेद." — जैसा कारण वैसा कार्य, पुष्ट कारण आलंबनमेंसें पुष्ट कार्य भास-पैदा होता है. यदि अपनकों श्री जिनशासनकी उन्नति-शोभा ' बढानेकी दरकारही हो तो कारण भी तदनुकूल अपश्य सेवन करनेही चाहिये. अपन अपनी मतिसे पाहे उतना ज्यादे कट सहन
कर; परंतु उन पवित्र शास्त्र नीति वचनानुसार थोडासा भी किया — जापै उसकी रोवरी हो सकैही नहीं. वास्ते पुष्टालंबनभूत श्रीजिनागमकी आज्ञानुसार चलने सेंही अपना सद्वर्तन हो सकता है