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ऐसाही अपनको हमेशां शुद्ध अंतःकरणसे इच्छना चाहिये कि जिस तरह आनंदधनजीने कहा है:___मुग्ध सुगम करी सेवन आदररे, सेवन अगम अनूप;
“देजो कदाचित् सेवक याचनारे, आनंदधन पद रूप.संभव."
ज्ञानी पुरुषोंने पांच प्रकार की क्रिया कही हैं-यानि वि५ १, गरल २, अननुष्ठान ३, तदहेतु ४, और अमृत क्रिया ५, ये पांच है. उनमें विष, गरल और अननुष्ठान ये तीनों क्रिया संसार फल, और तदहेतु तथा अमृत क्रिया मोक्ष फलको देती है।
हिक, पारलौकिक सुखके वास्ते और केवल गतानुगतिक पणेस - तत्त्व समझे विगरही करनेमें आती हुई विषादिक क्रिया तुन्छ फल दे कर अंतमें दुःखसे मु नही कर सकती है. और पूरा पूरा तय समझकर सहेतुक मोक्ष-जन्म मरणका चक्कर दूर करने के लिये सावधानीके साथ करनेमें आती तद्हेतुके क्रिया तथा क्रमशः त्रिकरण शुद्धिसें एकाग्रतासह करवाने में या करने में आती हुई अमृत क्रिया तुरंत मोक्षफल देती है. पासो मोक्ष सुखके अभिलापि सज्जनोंकों विषादिक क्रियाओं तज अमृत किया तथा तहेतु क्रियाकाही आदर करना मुनासीव है. श्री सर्वज्ञ भाषित समस्त सक्रिया सहेतुक होनेसे उन हरेकका कुल्ल हेतु गुरु द्वारा जानकर उनमें बहुत आदर करना वही लायक है; क्यों कि जिस्सें. समस्त दुःखोंका अंतमें तिलांजली दे अपना अंतरात्मा कपूर समान ७७५
ल यशका स्वामी हो परमात्म पदका अधिकारी हो और समस्त । वाधक कर्म बंधनकों छेद कर अनंत चतुष्टय-अनंत ज्ञान, अनंत