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३०६ चुंबन किया जावै तो उस चुंबनसें पञ्चखाण भंग होता है, अन्यथा नहीं होता है. औसा श्राद्धविधिमें कहा है..
१९ देसावगासिककी अंदर अपनी धारणा मुजब पूजन ना. नादिक और सामायिक किये जाय कुछ एकांत नहीं है.. __ २० श्री आर्थरक्षित सुरीने अपने पिता ( भुनी ) को कटिदोरा बंधायेका श्री आवश्यक दृत्तिमें कहा है, पोही आचरणासें अपी भी बांधा जाता है. ____२१ जिनमंदिरकी अंदरके गर्भगृह-गमारेकी द्वारशाखाक आठ हिरो करके उसमें से एक हिस्सेको वाद दूर कर देना, और सातवे हिरसेके आठ हिस्से करके उन आठवे हिस्से के सातवे हि. स्सेमें मूलनायकजीकी दृष्टि मिलानी-जोडनी चाहिये.
२२ पौषधादिक न किया होवै वैसा श्रावक मिनमंदिर या उपाश्रयम भवेश करनेके पस्त निसिही कहर मगर निकलने के वरूत आवसाही न कहवै.
२३ बीज सहित नारियलमें एकही जीव होता है. २४ हरे या सुखे सिंघोडामें दो जीव कहे हैं.
२५ पिछली दो घडी आदिशेष रात्रि होय तव पोपह लेना ये मूल विधि है और उस बाद पोपह लेना सो अपवाद स्था नक रूप है. ... २६ प्रतिष्ठा-अंजनशलाका अंजनकी अंदर मधु शब्दसें अभी मिश्री कही जाती है वास्ते उसे डाली जाती है.'