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... २७ जिसको यंत्रमं पीपनसें तेल न निकले और जिसकी दाल बनाते वख्त दानेके दो हिस्से हो जावै वैसे धान्यादिकको आ. चार्य द्विदल कहते हैं. . ___२८ जो नास्तिक-श्रद्धाहीन होकर उपधान पहनेसे निरपेक्ष हो उसको अनंत संसारी जानना जैसा श्री महानिशीथनी सूत्रमें कहा है.
२९ चातुर्मासमें साधुको रोगी साधुके औषधादिक सबसे चार पांच योजन तक जाना कल्पता है; परंतु कार्य पूर्ण हुवे बाद एक क्षणभर भी वहां ठहरना नहीं कल्पता है.
३० पहिले दूसरे पक्षवालोंने प्रणाम करलिया तो यथावसर पर्तना.
३१ मिथ्याष्टिको मिथ्याष्टि ऐसा समयको अनुसरके कहना या नहीं भी कहना. यानि जैसा मोका हो वैसा ही कहना. अमिय कथन न कहना. _____३२ चऽशरण पथना साधु और श्रावकोंको काल यस्तमें भी गुणना-पढ़ना कल्पता है. और अपाध्याय वाले दिनमें भी गुणना कल्पता हैं.
३३ चउशरणादिफ चार पयन्ने आवश्यककी तरह प्रतिक्रमणादिकमें बहुत उपयोगी होनेस उपधान योग वहन सिवाय भी परंपरासें पढ़ाये जाते हैं, उससे वो परंपरा ही उसमें प्रमाणरुप है. __३४ खुले मुंहसें बोलनेसे इयापहीका दंड आता है.
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