SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ २४८ Tru . Lil - जैन श्वेताम्बर गुगुक्षु वर्गको राम विज्ञप्ति. " अपना सुधारा" (SELF IMPROVEMENT.) __ मेरे प्यारे भाई और भगिनीयों ! अपने अपनाही सुधार करनेके लिये कौन आयगा । क्या सिद्धिसौधर्म सिधाये हुवे सिप भगवान किंवा अर्हत् प्रभु या सुधर्मास्वामीकी पह परंपरामें होगये हुवे आचार्य महाराज या उपाध्याय महाराज या तो सुविहित मुनिमंडल आकरके अपना सुधारा कर देखेंगे ? अपने पवित्र शासनकी मर्यादा मुजब सिद्ध भगवानतो अपना निरुपाधिक मुक्तिस्थान छोडकर यहांपर कवीभी अन्यदर्शनियों के मानने मुजब आनेके हेही नहीं, उसे वै संपूर्ण सुखी होनेपर यहां अपना सुधारा करनकों पधार जैसी उमेद रखनी सो तो झुंठीही है. अरिहंत भगपानभी जैसे पंचम-विषम-दुपमकालमें इस क्षेत्रकी अंदर प्राप्त नहीं हो, ये भी आप भाइ बाइ अच्छी तरहसें जानतेही हो शेष वर्गपुरीमें सिधाये हुवे आचार्यादिक महान् पुरुषोंकी भी अपने - अत्यंत प्यारे परलोकवासि पूज्यपितादिककी तरह यहां अपने सुधारेकी खातिर आनेकी आशाभी निकली हैं. तब मेरे प्रिय भाइ भगिनीय ! अपने आपका सुधार करने के लिये अब किसकी आशा रखनी कि जो आशा किसी वस्तभी सफल होवै ? अहा ! मेरे पारे ! सचमुच मैं तो समझता हूं कि अपन कस्तुरीये मृगकी तरह
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy