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दूर
जैनोंकों ऐसी बातें खास करके समझाकर छुडादेनी ये उन्होंका લાસ ત્તવ્ય હૈ; યા િયઈ વાવતે ધર્મમાનમેં નાં તાં દૂર્જત કૉलती हैं, वै हो जानेसें उन्होंकों धर्ममार्ग, सरल हो जाता है, और करनेमें आतांहुवा धर्मोपदेश सब सफल होता है निष्पही और विवेकी मुमुक्षु वर्गों इस संबंध में ज्यादे नही कहना पडेगा. १२ आजकल अपने जैनवर्ग में विद्या संबंधी तालीमकी बडी भारी न्युनता होनेसें अपने या दूसरे के कल्याणकी खातिर योग्य शुभ विचार करनेकी ताकत बहुतही कम मालुम होती है. इससे करके वै कवचित् बारीक समय आतेही बहुत बहुत धभराते है. इनके लिये उमदा इलाज तो यही है कि, जो जो हितवचने सुनमें आवै या वांचने में आवै उनका योग्य चितवन करनेकी आदत पाडनी चाहियें और स्वच्छंदता छोड़कर ज्ञानी पुरुषो के वचनानुसार चलन रखनेमें अपना पुरुषार्थ स्फुरायमान करना, यो करतें करतें परिणाममें वहुत अच्छा फायदा होनेका संभव है. अपने सब जैनोंके अभ्युदय हितार्थ जो कुछ संक्षेपसें कहा गया है उनकी सफकता प्राप्त होनेका वख्त हाथ होवो ? अस्तु !
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