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चाहिये ? वास्ते वैसी उपेक्षा बुद्धि न रखते ज्यौं जल्दी जल्दी अपनी भूल सुधार लेकर अपना श्रेय सधाया जाय वैसे वर्त्तना वही उत्तमताका लक्षण है, और समझ भी वही सच्ची गिनी जात्रैसुधरनेकी झूठी आशापर जीते रहे हुबेकों अचानक एकदम - बेमालुम कालने अपनी राक्षसी दाढके नीचे दवा लिया तो पीछे किसको पूछनेकों जाना ? वास्ते " पानी पहिले पाल बंधे तो खूब ये न्याय मुजब अव्वलसेंही आपके श्रेय निमित्त उपाय शोच उपयोगमें ले लेना वही दुरस्त है.
इस-मुजब आत्म सुधाराके वास्ते सचिंत और खंत वाले भव्य प्राणी सचमुच अपना हित साध सकते हैं. तात्पर्य यही हैकि देव द्रव्य, ज्ञान द्रव्य, साधारण द्रव्य या चाहे वैसे धर्म खाते के देवेसें आप मुक्त होकर दूसरे भी डूबते हुवे अपने मित्र संबंधी जनकोभी मुक्त करनेकी खास उत्कंठा रखनी; और इकट्ठे हुवे देव, ज्ञान, साधारण द्रव्य या पुण्य संबंधी द्रव्यकी योग्य व्यवस्था करनेके लिये एक अच्छी व्यवस्थापक कमीटी स्थापन करनी जो, कमीटीके प्रमुख या सेक्रेटरीओंने उस उस द्रव्यकी योग्य व्यवस्था करनेमें अपनी बुद्धि शास्त्र परतंत्र रखकर विचारके जहां जहां खास जरुर हो वहां वहां उसका उपयोग कर ज्यों ज्ञान दर्शनादिक उत्तम गुणोंकी प्रभावना हो त्यों करनेमें चुक जाना नहीं; और होती हुई आशातनायें दूर करनेका पहिलेसेही विचार रखना उपरांत उन उनद्रव्यकी रक्षा वृद्धि भी पवित्र शास्त्राम्नाय समझ कर उसके अ