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ही मुख्य पद देकर संतोष पाते हैं, जिसके परिणाममें आजकल प्रतीत होती हुई अधम स्थितिके ही भोग पडनेका वख्त बहुत क रके आये बिगर नहीं रहता है या जान बूझकर पथ्य छोड कुपथ्पको भजनेहारेको हितसुख किस प्रकार होवे ? पथ्यसमान तो न्यायमार्ग है, और कुपथ्य समान अन्यायमार्ग है. तो हे भव्यमाणी ! यदि तुम इस लोकमें प्रत्यक्ष या परलोकमें भी विशेष सुख पानेकों चाहते हो तो अन्यायरूप कुमार्गकों छोड़कर तुरंत न्यायका सीधा रस्ता पकडलो, स्वच्छंदमति तजंकर शास्त्रमति भजो, अविवेक छोड विवेक आदरो, कुमतिका संग तजकर सुमतिका संग भजो ! आजदिन तक अज्ञान दशासें भूले हुवे भटके उस्का पश्चाताप करके फिरसें भूल न करनेके वास्ते
6 संकल्प करो, और दूसरे भी तुमारे मित्र या संबंधी जनोंमें अच्छी आचरणासें छाप लगाओ, उनको अच्छी हितशिक्षा दो कि जिससे वै भी अच्छे मार्गपर वहन करने लगे. हठ कदाग्रह दूर कर जिस प्रकार अपना अच्छा होने उम मः . कार वर्तना; इतनाही नहीं मगर अपना बहेतर होता हुवा या वहे
तर भया हुवा देखकर दूसरे भी अपनने ग्रहण किया हुवा : उत्तम मार्गपर चलने लगे, उस मुजब वर्तना. अपन शोच लेवै कि अपन अपना बहेतर अगाडीपर कर लेवेंगे, मगर वो केवल, मोहभ्रमही मान लो; क्योंकि प्रत्यक्ष अपना होते हुवे विगाडकी तर्फ बेदरकासे बता करके भविष्य पर सुधरनेकी उमीद किस बहानेसें रखनी
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