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__ कदाचित् मन विगडनेसे या भूल होजानेसें बडे दुःखका कारण हो प.. निःशुक परिणामी, श्रद्धा विवक शुन्य, न्यायनीति-लोक विरु
वतन चलानेहारे कोइ भी उदंडको उक्त अधिकार कमी सुं___५९५ न करना. वैसे अधिकारीको मुंपरद करनेसे उसकी और सुं५रद करनेहारे सभीको वडा भारी नुकशान होता है, और उत्तम देव द्रव्यका गेर उपयोग या विनाश होजाता है. उन देव द्रश्यका विनाश या देदरकारी करनेवालेको-खाजाने वालेकों और दाक्षियतासे उनमें शामिलगीरी करने वालेकों अनंत संसारमें भटककर महा घोर दुःख उठाने पड़ते हैं. वास्ते ज्यौं बन सके त्यौं भवभीर विवको जनको खंत पूर्वक उनका लेप-दाघ-दोष न लग जाय वैसी फिजा रखनेकी जरुरत है. थोडा भी देव द्रव्यका विनाश पडा भारी नुकशान करता है, तो बिलकुल नुकशान करनेसें या बेदरकासेि कितना अहित होगा सो विवेक लाकर शोचना चाहिये. विवेक रहित सहसा काम करने वालेकों पीछेसें बहुतही पीछताना पडता है; वास्ते चाहे वैसी आपत्तिके वख्त भी दानत पाक रखकर रहनेसे अंतम श्रेय होता है. और जैसेही विवेकी सज्जन सद्गृहस्थही असे अधिकारक लायक है। लेकिन स्वार्थ साधनमही तत्पर विकविकलजन लायक नहीं है.
पवित्र ज्ञान दर्शनादिकके महीमाको पढानेहारा देवयका भक्षन-विनाश या वेदरकारी करनेसें, पेस्तर वो चाहे वैसी स्थिति भुक्तता होवै, चाहे वैसा सुक्ष माना जाता होवै, चाहे वैसा सुखी •