________________
રર खर्चनकी जगह पखीलताइसें चाहिये उतना विकसह न खर्च या बेदरकारीसे उनका गेर उपयोग कर, करने देवै अर्थात् शाखनीति विरुद्ध महा आरंभकी द्धि होवे या द्रव्यका नाश होवै वैसे सख्सको व्याजसें या अंग उधारसे धीर धार करै, तो उसे देव द्रव्यकी शुद्धि करनेहारा उलटा संसार भ्रमणही बढाता है. मतबल येही है " कि देव द्रव्यका रक्षण करनेहारा या उनकी वृद्धि करनेहारा शास्त्र न्याय नीतिमें निपुण और प्रमादसें रहित उसी मुजव चलनेवाला चाहिये. वैसे चकोर पुरुषसे देव द्रव्यकी चिंतन कीगइ निश्चयता झान दर्शनादि गुणोंका महीमा बढानेरुप पार पडती है, लेकिन दूसरोस पार नहीं पड़ती है. वास्ते बन सके वहांतक वैसे पुरुष रत्नकों ढुंढ निकालके उन्हीकाही पैसा उत्तम अधिकार मुंप(द करना चाहिये. वैसा पुरुष न मिल सके तो जो सामान्य रीति भी व्यवहार कुशल नीति प्रिय-लोकप्रिय श्रद्धानिकसे भूषित और बहुत भव
भीरु होवै उसीकोही उक्त द्रव्यकी व्यवस्था करनेकी भलामण करनी __ चाहिये और उन मनुष्यकोभी लाजिम है कि ज्यों बन सके यौँ
तुरत वो देव द्रव्यादिक संबंधी शास्त्रनीति जाननेके वास्ते ज्ञाननी पुरुषाका आश्रय लेकर उपयोग वंत होना चाहिये. कि जिस्से आपकों और संबंधी जनोंकोंभी हरकत न पहुंचै. बन सके वहांतक तो वसे कामके कार्यभारीकी मददमें एक दो दूसरे भी मनुष्य साथ रहदै, और उन कार्यभारीकोंभी साथ रहने वालोंकी सम्मति मिला( कर काम करनेका उपयोग रहपै, तो बहुत फायदा होवै. नहीं तो.