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२११ कि जो वडे भाग्यके योगसे अपने हाथ आई है उसीका सार्थक हुवा माना जावै, बाकी तो दरियावमैं गोता लगाये समान पीछे संसार समुद्र में डूब जानेका है. पास्ते जान हो-अनादिकी मोह निदको तजकर हुंशियारी के साथ स्वपरहित साधनको तत्पर होना चाहिये. नहि तो यमकी चपेट लगनेसें फिक्र गिरफतार हो यमके महमान होकर निर्मित दुःख दीनपनेके साथ जरुर भुक्तने ही पडेंगे; वास्ते पहिलेसही चेतना सोही बहुत फायदेमंद है. इत्यलमा देव द्रव्य ज्ञान द्रव्य और साधारण द्रव्य संबंधी विचार.
नरेंद्र, देवेंद्र, और योगींद्र सेवित जगत् पूज्य श्री जिनेश्वर देवजीकी भति प्रभावनाक वास्ते निर्माण किया हुवा था किया गया द्रव्य देवद्रव्य कहा जाता है. उक्त देवद्र०५ ज्ञान दर्शनादिक गुणांकी प्रभावना करनहारा और महमिा पढानेहारा होनेसे सबसे मुख्य गिनलिया है, और उसीका न्यायसें संरक्षण या वृद्धि करने हारेकोभी बहुतसा फल बतलाया है. यानि शाखनीति समझकर विवेकसे जहां खर्चनेकी जरुरत मालुम पडे वहां उदार दिलसे झूठा ममत्व छोडकर खर्चनेका उपयोग पूर्वक रक्षण करनेहारा, और शास्त्रनीति अनुसारही न्याय-विवेकसे उनकी वृद्धि करनहारा बहुतसा फल यावत् तीर्थरगोत्र तक उपार्जन करता है; परंतु शास्त्रनीति विरुद्ध पनि चलाकर अन्याय अनीति में देवद्रव्यपर अठा ममत्व धारनकर उनको उचित स्थलमें न खर्च या न खर्चने के लिये देवै या उनको सूमकी तरह जमीन वगैरमें गाडकर २२०खें अगर.